असम के बंगलाभाषी मुसलमानों को मियां कहकर बुलाया जाता है।यह शब्द उनके लिए एक अपमानजनक संबोधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। हाल के समय में बंगलादेशी लोगों की पहचान के लिए चल रहे नागरिकता रजिस्टर बनाने की प्रक्रिया में इस समुदाय के लोगों को बाहरी, गैर-असमिया आदि कहकर हाशिए पर धकेला जा रहा है। पहले भी इन्हें कई अपमानजनक परिस्थितियों का सामना करना पड़ा है।इन्हें बड़े पैमाने पर हिंसा का सामना भी करना पड़ा है। 1983 में असम के नेल्ली में हुए नरसंहार में कुछ ही घंटों के अंदर करीब 2000 लोगों की नृशंस हत्या हुई थी। मियां समुदाय के लोगों के खिलाफ ऐसी और भी अनेक घटनाएं हुई हैं।
इस स्थिति के प्रतिरोध के तौर पर मियां कविता की शुरूआत हुई। वैसे तो मियां कविता की शुरूआत 1939 से मानी जाती है जब मौलान बंदे अली ने कविता लिखी जिसे अंग्रेजी में ‘A Charuwa’s Proposition‘ के नाम से अनूदित किया गया। इसके बाद 1980 के दशक में भी कबीर अहमद जैसे कवियों ने ( ‘I Beg to State that...’) इस काव्य धारा को आगे बढ़ाया। लेकिन हाल के वर्षों में मियां कविता ने नया रूप लिया है और नयी ऊर्जा के साथ सामने आया है। इसके पीछे सोशल-मीडिया का बड़ा हाथ रहा है। इसकी शुरूअता हाफिज अहमद की कविता Write Down I am Miya से हुई जो सबसे पहले फेसबुक पर प्रकाशित हुई।
आज के दौर में जब राष्ट्रवाद के नाम पर संकीर्ण पहचान की राजनीति भयावह स्वरूप ले रही है, इस तरह की प्रतिरोध की कविताओं का अपना विशेष महत्व है। मैंने कुछ मियां कविताओं का अंग्रेजी से अनुवाद किया है जो तीन किश्त में ब्लॉग पर डाल रहा हूं। पेश है इस किश्त की पहली कड़ी।
मियां कविताओं पर कुछ लेखों के लिंक नीचे देखें –
- https://www.firstpost.com/living/for-better-or-verse-miyah-poetry-is-now-a-symbol-of-empowerment-for-muslims-in-assam-3007746.html
- https://www.aljazeera.com/indepth/features/2016/12/protest-poetry-assam-bengali-muslims-stand-161219094434005.html
- https://thewire.in/culture/siraj-khan-shalim-m-hussain
- http://twocircles.net/2016may01/1462092489.html
- https://www.news18.com/news/india/climatechangeart-part-vii-miyah-poets-pen-verses-on-assamese-muslims-who-are-victims-of-environmental-displacement-1764821.html

अनुवाद- राजेश कुमार झा
(1)
लिख लो- मैं मियां हूं (हाफिज अहमद)
लिख लो,
हां, लिख लो,
कि मैं मियां हूं,
एनआरसी में मेरा सीरियल नंबर है 200543
दो बच्चे हैं मेरे,
तीसरा आने वाला है,
अगली गरमियों में।
क्या तुम उससे भी करोगे नफरत,
जैसे करते हो मुझसे?
लिख लो,
हां, लिख लो
कि मैं मियां हूं,
मैं बंजर, दलदल को बदल देता हूं,
हरे धान के खेतों में,
ताकि तुम खा सको।
मैं ढोता हूं ईंट,
ताकि बन सकें तुम्हारे मकान,
चलाता हूं मैं तुम्हारी कार,
ताकि तुम्हें मिल सके आराम,
साफ करता हूं तुम्हारी नालियां,
ताकि तंदुरुस्त रह सको तुम।
मैंने हमेशा की है तुम्हारी खिदमत,
फिर भी नाराज हो तुम मुझसे।
लिख लो,
हां, लिख लो
कि मैं मियां हूं,
नागरिक हूं मैं
इस लोकतांत्रिक,धर्मनिरपेक्ष देश का,
कोई अधिकार नहीं है मुझे,
मेरी मां है डी-वोटर,
वैसे उसके मां बाप हैं इसी हिंदुस्तान के।
अगर चाहते हो तुम, तो मार डालो मुझे,
भगा दो अपने गांव से,
मंगा लो किराए पर बुलडोजर,
चला दो मेरे ऊपर।
तुम्हारी गोलियां कर सकती हैं छलनी मेरी छाती,
भले ही नही हो गलती मेरी कुछ भी।
लिख लो,
हां, लिख लो
कि मैं ब्रह्मपुत्र का मियां हूं।
तुम्हारी प्रताड़ना ने झुलसा दिया है मेरा शरीर,
आग से लाल हो गयी हैं मेरी आंखें।
सावधान,
गुस्से के सिवाय कुछ भी नहीं है मेरे पास,
दूर रहो मुझसे,
या,
हो जाओ खाक।
Write Down I am a Miya-Hafiz Ahmad- English Text
(2)
नाना, मैंने लिखा है (शालिम एम. हुसैन)
नाना मैंने लिखा है,
नोटरी ने सत्यापित किया, दस्तखत भी किए,
सबूत के साथ कहा कि मैं मियां हूं।
अब देखो कैसे उग रहा हूं मैं,
बाढ़ के पानी से,
तैरता हूं धसान की मिट्टी के ऊपर,
रेत, दलदल और सांपों को रौंदता चलता हूं,
धरती की हिम्मत तोड़ता, कुदाल से खोदता हं गड्ढे,
धान और गन्ने के खेतों से रेंगता, दस्त से गुजरता,
दस प्रतिशत साक्षरता लिए,
देखो कैसे झटक रहा हूं कंधे और संवार रहा हूं अपने बाल,
पढ़ता हूं कविता की दो पंक्तियां, गणित का एक सूत्र,
सकपका जाता हूं मैं जब मवाली कहते हैं मुझे बांग्लादेशी,
समझाता हूं अपने बागी दिल को,
आखिर मियां हूं मैं।
देखो मैंने अपने बगल में दबा रखा है संविधान,
दिखा रहा हं उंगली दिल्ली की ओर,
जाता हूं अपने संसद, अपने सर्वोच्च न्यायालय और कनाट प्लेस की तरफ,
कहता हूं अपने सांसद और माननीय जजों को,
और जनपथ पर नकली गहने-ताबीज बेचती औरत को,
कि देखो मैं मियां हूं।
मिल सकते हो मुझसे कलकत्ता, नागपुर या सीमापुरी की झुग्गियों में,
सिलिकोन वैली या मैकडोनाल्ड में भी सूटबूट पहने मुझ से मिल सकते हो,
बीरवा में गुलामी करते या फिर,
मेवात में बेची गयी मुझ दुल्हन से मिल सकते हो।
देखो मेरे बचपने पर लगे धब्बों को,
मेरी पी.एचडी. के गोल्ड मेडल को देखो,
फिर मुझे बुलाओ सलमा, या कहो अमन या अब्दुल या फिर बहातोन्नेसा,
चाहो तो गुलाम कहो।
देखो मुझे हवाई जहाज पकड़ते,
या वीसा लेते देख सकते हो मुझे,
बुलेट ट्रेन पर चढ़ते,
या बुलेट की गोली खाते,
तुम्हारे कहे का मकसद समझते,
रॉकेट को पकड़ते,
लुंगी पहन अंतरिक्ष में जाते देख सकते हो मुझे।
वहां जहां तुम्हारी चीख कोई नहीं सुन सकता,
दहाड़ो,
मियां हूं मैं,
और फख्र है मुझे।
Nana I have written-English Text
(3)
इसके जवाब में अमन बदूद की कविता-
तुमने नेल्ली में कत्ल किया मेरा,
क्योंकि मियां था मैं,
तुमने खोगराबारी में की मेरी हत्या,
क्योंकि मियां हूं मैं।
तुमने मुझे बांग्लादेशी कहकर दी गाली,
क्योंकि मियां हूं मैं।
तुमने छीने मेरे हक,
क्योंकि मियां हूं मैं।
तुमने दी नहीं मुझे इज्जत,,
क्योंकि मियां हूं मैं।
लेकिन मुझे आज पहले से कहीं ज्यादा फख्र है,
कि मियां हूं मैं।
तुम्हारी नफरत पर थू,
तरफदारी पर थू,
झूठे प्रचार पर थू,
डाह पर थू।
लेकिन मुझे आज पहले से कहीं ज्यादा फख्र है,
कि मियां हूं मैं।
(4)
फिर भी मियां हूं मैं (शाहजहां अली अहमद)
मेरी कहानी,
यानी हड्डियों को जलाने वाल तपते सूरज की कहानी।
मेरी मर्दानगी,
यानी झुके हुए कंधों और नमक में डूबे कांटो के चुभन
की चेतावनी।
मेरी कहानी यानी
अनाज ज्यादा उपजाओ के मंतर, आदमखोर हैजे और
मेरे पुरखों द्वारा कंटीले जंगल में फैलायी खुशबूदार क्रांति की कहानी।
नायकों का अफसाना-मेरी कहानी,
सन 1961में बलिवेदी पर चढ़ने वालों के त्याग की कहानी,
इतिहास की गांठों से चीखते रक्त की कहानी।
मेरी कहानी यानी 83, 90-94, 2008,2012 और2014की कहानी।
मेरी कहानी यानीजुल्मो सितम, ज़िल्लतों की बात,
प्राग्ज्योतिषपुर में द्रविड़ों के गुर्बत की कहानी।
मेरा रंग है शर्म का रंग
जो कान पकड़े बैठा है घुटने झुकाए,
गुजर रहे हैं सामने राजे महाराजे,
राज विदूषकों की घंटीदार टोपी के अंदर जो है छुपा,
वही हूं मैं।
पालतू बेजुबान जानवरों के साथ पंक्ति में खड़ा,
घुड़साल में टंगी कोई पुश्तैनी तस्वीर,
वही हूं मैं।
क्योंकि भले ही बोतलें दिखती हैं अलग अलग,
शराब उनमें है वही पुरानी,
और सिर्फ पैदाइश को अगर देखो तो मैं हूं अब भी मियां।
I am yet a Man-Shajahan Ali Ahmad-English Text
(5)
एक चरुआ युवक बनाम लोग (2000)
(हाफिज अहमद, अंग्रेजी अनुवाद- शालिम एम. हुसैन)
हुजूर,
हां, हम दोनों भाई हैं,
वो और मैं,
भाई हैं दोनों एक ही परिवार के।
लेकिन भैया हैं जिद पर अड़े,
बनना चाहते हैं शहंशाह,
और इसलिए करते हैं इंकार खून के रिश्ते।
हुजूर,
उसका दावा है गलत
कि हम दोनों है सौतेले भाई,
जब हुआ था मेरा जन्म तो
अलग नहीं किए गए थे मां और बेटे,
उसने छुप छुप कर दोस्तों और दुश्मनों की
बातें सुनी हैं बहुत अधिक,
खराब कर लिया है अपना भेजा।
शायद इसलिए वह कहता है मुझे नाजायज।
हुजूर,
वह अक्सर हो जाता है गूंगा,
फूट पड़ता हैउसका गुस्सा बेकाबू हावभाव, हरकतों में,
नापाक गुस्से में कभी,
नोचने लगता है वो अपने बदन का मांस,
कभी नहीं सोचता है वह
आखिर क्यों हुई मजबूर हमारी छः बहनें
छोड़ने इस घर को।
हुजूर,
अब वह हो चुका है थोड़ा होशियार,
या शायद मैं ऐसा सोचता हूं,
आपने गौर किया है हमारी मुश्किलों पर,
देखा है आपने,
हमारे अपने जलते हैं किस तरह मां के कलेजे की चिता पर,
कैसे बन जाते हैं अपनों के लिए ही वे नरभक्षी।
हुजूर,
बिखेरूं मैं अमन का पानी कैसे?
दक्ष के यज्ञ को रोकूं कैसे?
रोकूं कैसे सती को टुकड़े टुकड़े होने से?
***
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