के. श्रीलता की कविताएं
कवि, कहानीकार तथा अनुवादक के. श्रीलता आधुनिक भारतीय अंग्रेजी लेखकों में एक जानी मानी नाम हैं। उनके अनेक चार काव्य संग्रह तथा एक उपन्यास प्रकाशित। बिंबों की सरलता और लेखन की सादगी उनकी कविताओं की खास पहचान है। वे आईआईटी मद्रास में अंग्रेजी की प्रोफेसर हैं।

चिनार की पीली गवाही में दफनाया है मैंने,
चांद की सुर्खी लिए चेहरों को जिन्होंने चखा नहीं स्वाद जवानी का,
दाढिंयों के निशान शुरू हुए थे आने,
झूठे मुठभेड़ों में मारे गए जो।
थे जो बेहद अहम कहीं, किसी के लिए,
घाव से लथपथ मुर्दा शरीर,
बेटे जिनसे अब न कभी मिल पाएंगी उनकी मांएं,
दुधमुहे बच्चे,
बच्चियां जिनकी योनियां हैं क्षत-विक्षत
और आंखों में तैर रहे हैं सपने,
सभी को दफनाता हूं मैं
और मेरी नसों में थम जाता है खून।
हर नयी कब्र के सामने होंठों पर लिए इबादत,
लाशों को नाम देते हुए मैंने बिताए हैं घंटों,
जो हो चुके थे गायब, मर चुके थे, चले गए हमेशा के लिए।
मैंने बिताया है वक्त, रोते फफकते,
और चिनार के पेड़ सिसकते रहे हैं मेरे साथ।
उन्हीं दरख्तों के नीचे दफ्न है मेरा खुशनुमा बीता हुआ कल।
एक दोस्त चिढ़ाता है मुझे,
‘मोहम्मद, दफनाने के धंधे में हो गए हो तुम
अब बहुत हुनरमंद।‘
ठीक कहता है वो।
दफना सकता हूं हर चीज जो आती है मेरे पास,
बस अपनी यादों को नहीं दफना सकता।
*यह कविता अता मोहम्मद के लिए लिखी गयी है। अता मोहम्मद ने कश्मीर में कम से कम दो सौ लावारिस और अनजान लाशों को दफनाया था। तीन साल पहले उनकी मृत्यु हो गयी।
I bury them under the witnessing Yellow of Chinar-K.Srilata- English Text
https://drive.google.com/open?id=1kNsLDL9tZ2I6IJjFFHE-vx_zUtezs1G8
मैं नहीं जानती थी मुझे इतना था प्यार
मैं नहीं जानती थी कि खिड़कियों से मुझे था इतना प्यार,
लेकिन मुझे है प्यार खिड़कियों से इतना कि
खिड़कियों के लिए जमीन पर पटक सकती हूं किसी को भी,
ताकि रोशनी फिर कर दे मेरी आंखों को सराबोर।
मैं नहीं जानती थी कि खाली पैर मुझे हैं इतने प्यारे,
या पसंद है मुझे चलना खाली पैर कहीं भी
जैसे अपने कंधों पर लादकर दिल,
भिश्ती ले जा रहा हो मशक।
मैं नहीं जानती थी कि दिन की दोपहरी में,
कितने प्यारे थे मुझे शांति के छोटे छोटे टापू,
मगर मुझे पसंद हैं ये-
क्योंकि लगते हैं वे पुराने दोस्तों की तरह।
मैं नहीं जानती थी कि मुझे पसंद है ये खयाल
कि रात उतरती है थके परिंदों की तरह,
जैसे कमरे से भीतर बाहर आते जाते पंछी और कविताएं,
पसंद हैं मुझे।
पता नहीं था कि इतनी सारी चीजों से था मुझे प्यार,
अभी जब मैंने पढ़ा हिकमत को,
कर रही हूं उन्हें आजाद,
एक एक कर।
बहुत सुंदर। मार्मिक। बहुत बहुत बधाई।
LikeLike