प्रतिरोध के स्वर के रूप में कविताएं मानव सभ्यता में हमेशा से महत्वपूर्ण रही हैं। भले ही नाजी जर्मनी का वक्त हो जहां बर्तोल्त ब्रेख्त और दुनिया भर के अन्य कवियों ने मानवीय संवेदना को एक नया स्वर दिया या फिर फिलिस्तीन में महमूद दरवेश जैसे कवियों की रचनाएं हों, कविता समाज के संघर्ष का आइना भी रही है और वह संघर्ष का संबल भी रही है। मियां कविता मानव संघर्ष की इसी लंबी रचनात्मक परंपरा का एक हिस्सा है।
असम के बंगलाभाषी मुसलमानों को मियां कहकर बुलाया जाता है।यह शब्द उनके लिए एक अपमानजनक संबोधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इन्हें बड़े पैमाने पर हिंसा का सामना भी करना पड़ा है। 1983 में असम के नेल्ली में हुए नरसंहार में कुछ ही घंटों के अंदर करीब 2000 लोगों की नृशंस हत्या हुई थी।
इस स्थिति के प्रतिरोध के तौर पर मियां कविता की शुरूआत हुई। हाल के वर्षों में मियां कविता ने नया रूप लिया है और नयी ऊर्जा के साथ सामने आयी है। इसके पीछे सोशल-मीडिया का बड़ा हाथ रहा है।
आज के दौर में जब राष्ट्रवाद के नाम पर संकीर्ण पहचान की राजनीति भयावह स्वरूप ले रही है, इस तरह की प्रतिरोध की कविताओं का अपना विशेष महत्व है। मैंने कुछ मियां कविताओं का अंग्रेजी से अनुवाद किया है जो तीन किश्तों में ब्लॉग पर डाल रहा हूं। पेश है इस किश्त की दूसरी कड़ी।
पहली कड़ी में शामिल कविताओं को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें-
https://hyphen.blog/2018/08/12/मियां-कविताएं-1/
अनुवाद- राजेश कुमार झा
(6)
आह (हाफिज अहमद, अंग्रेजी अनुवाद- हाफिज अहमद)
(ब्रह्मपुत्र नदी के कटान में सब कुछ खोने के बाद)
क्या नहीं था हमारे पास?
हरे धान के खेत,
तालाब में फुदकती मछलियां,
खिलखिलाते बच्चों से भरे घर,
नारियल, सुपाड़ी के पेड़ों की अंतहीन कतारें,
पुशुरा का उत्सव, मस्ती में डूबे लोगों से भरा आंगन।
क्या बचा है हमारे पास आज,
हमारी गर्दनों में बंधी गुलामी की जंजीर,
और जीतने के लिए सारी दुनिया।
Sigh-Hafiz Ahamad- English Text
(7)
हमारी क्रांति (रिजवान हुसैन)
धिक्कारो हमे,
चाहो तो लातों से मारो,
लेकिन सब्र के साथ हम बनाते रहेंगे
तुम्हारे आलीशान मकान, सड़कें, पुल।
अपने रिक्शे में धैर्य के साथ खींचते रहेंगे
तुम्हारे थके, थुलथुले, पसीने से तरबतर शरीर।
घिसते रहेंगे तुम्हारे संगमरमर के फर्श,
जबतक आ न जाए उनमें चौंधियाने वाली चमक।
पटकते रहेंगे तुम्हारे गंदे कपड़े,
हो न जाएं वे जबतक झक्क सफेद।
ताजे फलों और सब्जियों से भरते रहेंगे तुम्हारे पेट
और जब आओगे तुम तापाजुली चार में हमसे मिलने,
हम तुम्हें देंगे दूध और साथ ही ताजा मक्खन भी।
मगर तुम देते रहो हमें गाली,
आज भी हैं हम तुम्हारी आंखों में खटकते।
लेकिन लोग कहते हैं सब्र की भी होती है इंतिहा,
टूटी हुई सीपियां भी धंस जाती हैं मांस में,
हम भी बन सकते हैं बागी,
हमारी बगावत को नहीं चाहिए होगी बंदूक,
हमारी बगावत को नहीं चाहिए होगी डायनामाइट,
टेलिविजन पर पूरे मुल्क में नहीं दिखाई जाएगी हमारी बगावत,
छपेगी नहीं हमारी बगावत की खबरें
दीवारों पर लाल-नीली मुट्ठियां भीचे
नहीं लिखी जाएंगी इबारतें हमारे बगावत की।
फिर भी हमारी बगावत झुलसा देगी तुम्हारी आत्मा,
कर देगी उसे खाक।
Our Revolution- Rezwan Hussain- English Text
(8)
मुझे मियां कह कर बेइ्ज्जत मत करो (अब्दुर रहीम)
अब मियां कह कर मेरी जिल्लत न करो,
लगता है शर्मनाक अब मुझे,
मियां कह कर अपना परिचय देना।
चाहे तुम मुझे करो प्यार या करो नफरत,
कुछ फर्क नहीं पड़ता मुझे,
न मुझे मिलता, न खोता हूं कुछ भी मैं,
लेकिन मियां कह कर अब मुझे अपमानित न करो।
चाहे तुम मुझे करो प्यार या करो नफरत,
मगर रहम न दिखाओ मुझ पर अब,
गले से लगाकर,
पीठ में छुरा न भोंको अब,
मियां बुलाकर जिल्लत न करो मेरी अब।
धूप में जली मेरी पीठ पर
मत तलाशो कंटीले तारों के निशान,
भूलो मत ‘83, ‘94, ‘12, ‘14
गुजारिश है तुमसे, मेरे घावों को न कहो अब,
कंटीले तारों के निशान,
जिल्लत न करो मेरी, कहकर मुझे मियां अब।
विनती है तुमसे न लिखो राष्ट्रभक्ति की गाथाएं,
निचोड़कर मेरा खून,
झांकों मत मेरे मुंह के अंदर,
कब के टूट चुके हैं मेरे दूधिया दांत।
अब मियां कह कर मेरी जिल्लत न करो,
लगता है शर्मनाक अब मुझे,
मियां कह कर अपना परिचय देना।
Don’t Insult me as a Miya-Abdur Rahim-English Text
(9)
आज मुझे अपना नाम नहीं मालूम (चान मियां)
आज मुझे अपना नाम नहीं मालूम,
गलत हिज्जे,तानों, उपहासों में खो चुका है यह,
तुम्हारे दफ्तरों के कागजातों, दराजों और आलमारियों के दलदल में,
गुम हो चुका है मेरा नाम।
अल-सुबह पैदा हुआ फज्र अली,
अपनी क्लास का कैप्टन फजल अली,
मागुन गीत गाने वाला फजल मियां,
बन चुका है गौहाटी का एक बेनाम बांग्लादेशी मजदूर।
मैंने जिए हैं कई नाम, कई जिंदगियां,
लेकिन मेरी अपनी कोई भी नहीं।
लेबर-बाजार में खुद को बेचते,
याद आती थी मुझे कैसे संख्याओं का करते हैं वर्ग,
मक्के के गट्ठरों को ढोते,
याद आता था मुझे मागुन, देता था सुकून मागून,
बंदी शिविर के बाहर उकड़ू बैठा सोचता था,
मैंने ही तो बनाया इस इमारत को?
एक पुरानी लुंगी और अधपकी दाढ़ी के सिवाय,
अब कुछ भी नहीं है मेरे पास,
हां, 1966 के वोटर लिस्ट की फोटोकॉपी है मेरे पास,
जिसमें दगा हुआ है मेरे दादा का नाम।
ठीक है, आज मेरा कोई भी नाम नहीं,
लेकिन ललचाओ नहीं मुझे उस नाम से,
जो तुमने दिया है मुझे।
मुझे बांग्लादेशी कहकर न बुलाओ,
मुझे नहीं चाहिए तुम्हारे ताने,
रहम न करो मुझे नव-असमिया कहकर,
दो मुझे कुछ भी नहीं,
दो बस उतना जो है मेरा।
ढूंढ लूंगा मैं एक दिन अपना नाम,
और वो होगा नहीं तुम्हारा दिया।
I don’t know my name today-Chan Miya-English Text
(10)
एक चरुए की मान्यताएं (1939) (मौलाना बंदे अली)
कुछ लोग कहते हैं बंगाल मेरी जन्मभूमि है,
और इस कड़ुए आरोप को दोहराते हैं
ठीक है, उनके आने के बहुत पहले
मेरी अम्मी, अब्बा और बहुत से लोग
बेघर हो गए, छोड़ दिया अपना देश उन्होंने,
कितने लोग थे उस समय इन मुल्कों के,
जिन्होंने आज पहन रखे हैं ताज और मुखौटे नेताओं के।
लालच ने घेर रखा है उन्हें,
मुझे मालूम है, मैं चुपचाप देखता हूं लालच की जुबान।
लेकिन मैं नहीं करूंगा छेद उसी पत्तल में,
जिसमें मिलता है मुझे खाना,
मेरा दीन नहीं देता मुझे इजाजत।
जिस जमीन पर रहता हूं मैं,
उसकी बेहतरी में ही खुशी है मेरी।
वही जमीन जिसे छोड़कर मेरी अम्मी आयी, अब्बाजान हुए जन्नत नसीन,
यही धरती है मेरी, मेरा सुनहला असम।
यही धरती है मेरा पवित्र पनाहगाह,
जिस जमीन को खुरच कर बनाया है मैंने अपना आशियाना,
मेरी ही धरती है यह।
ये अल्फाज हैं कुरान के,
इसमें नहीं है कोई झूठ-फरेब।
इस धरती के लोग हैं सीधे-सच्चे,
असमिया लोग हैं हमारे,
हम आपस में बांटेंगे जो भी है हमारे घरों में,
बनाएंगे एक सुनहरा परिवार।
मैं न तो चरुआ हूं, न ही हूं पमुआ,
हम भी हो चुके हैं असमिया,
असम की जमीन, इसका हवा और इसकी जुबान,
बराबरी का हक है हमारा भी इसमें।
अगर मरता है असमिया तो हम भी मरते हैं,
लेकिन होने क्यों दें हम आखिर ऐसा?
कहां मिलेगी ऐसी इज्जत, इतनी मुहब्बत,
कहां मिलेगी हमें ऐसी धरती?
जहां हल चलती है जमीन पर तो निकलता है सोना,
कहां मिलेगी ऐसी दरियादिल धरती।
मां असम अपनी छाती पर पोसती है हमें,
हम हैं इसके बच्चे हंसते खेलते,
आओ मिलकर गाएं एक साथ- हम हैं असमिया,
हम न होंगे मैमनसिंघिया,
नहीं चाहिए सरहदें,
हम होंगे भाई,
आएंगे जब बाहर से लुटेरे,
खुले सीनों से उन्हें रोकेंगे हम।
१. चरुआ- चार से आने वाले लोग
२. पमुआ- बाहर से आकर बसने वाले
A Charua’s Proposition-Maulana Bande Ali-English Text
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मियां कविताओं पर कुछ लेखों के लिंक नीचे देखें –
- https://www.firstpost.com/living/for-better-or-verse-miyah-poetry-is-now-a-symbol-of-empowerment-for-muslims-in-assam-3007746.html
- https://www.aljazeera.com/indepth/features/2016/12/protest-poetry-assam-bengali-muslims-stand-161219094434005.html
- https://thewire.in/culture/siraj-khan-shalim-m-hussain
- http://twocircles.net/2016may01/1462092489.html
- https://www.news18.com/news/india/climatechangeart-part-vii-miyah-poets-pen-verses-on-assamese-muslims-who-are-victims-of-environmental-displacement-1764821.html
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