निज़ार कब्बानी (1923-1998)। सीरियाई कवि, राजनयिक तथा प्रकाशक। अरबी दुनिया के महानतम कवियों में गिने जाने वाले निज़ार कब्बानी की कविताओं में स्त्री केंद्र में रहती हैं। उनकी कविताओं में प्रेम की अभिव्यक्ति के साथ ही स्त्री की आजादी का भाव सर्वोपरि रहता है। कब्बानी को प्रेम और अरबी राष्ट्रवाद का कवि माना जाता है। इनकी कविताओं को सीरियाई और लेबनानी गायकों ने और भी लोकप्रिय बनाया। इनकी तीन कविताओं का हिंदी अनुवाद।
लिखना चाहता हूँ तुम्हारे लिए कुछ अलग शब्द
अनुवाद- राजेश कुमार झा
लिखना चाहता हूँ तुम्हारे लिए कुछ अलग शब्द,
इजाद करना चाहता हूँ नई जुबान, सिर्फ तुम्हारे लिए-
बिलकुल तुम्हारी देह और मेरे प्यार के बराबर।
चला जाना चाहता हूँ दूर अपने शब्दकोश से,
और छोड़ देना चाहता हूँ अपने होंठों को
थक गया हूँ मैं अपने मुँह से,
चाहता हूँ बदल दूँ इसे-
कुछ इस तरह कि जब चाहूँ
बन जाए यह देवदार का पेड़,
या माचिस की डिब्बी।
निकलें इससे शब्द-
जैसे समंदर से निकलती है जलपरी,
जैसे जादूगर की टोपी से फुदक कर निकले सफेद चूजे।
वापस ले लो सभी किताबें
जो पढ़ी मैंने बचपन में,
मेरे स्कूल की सभी कॉपियां, कलम, खड़िया, ब्लैकबोर्ड।
लेकिन सिखा दो मुझे एक नया हर्फ
जिसे लटका सकूँ मैं प्रेयसी के कानों में झुमके की तरह।
मुझे चाहिए नई उंगलियां,
कि लिख सकूँ कुछ अलग तरीके से।
जो हो ऊँची जैसे जहाजों की मस्तूल,
लंबी जैसे जिराफ की गरदन,
ताकि सिल पाऊँ प्रेयसी के लिए
कविता की पोशाक।
बनाना चाहता हूँ तुम्हारे लिए एक किताबघर
सबसे अलहिदा,
हो जिसमें बारिस की रिमझिम,
चाँद की धूल,
मटमैले बादलों की उदासी
और
पतझड़ से रौंदे झड़बेरी के पेड़ से गिरे-
पत्तियों का दर्द।
I want to write different words for you -Nizar Qabbani- (English Text)
***
एक बेवकूफ औरत की चिट्ठी
(मर्द के नाम)
अनुवाद- राजेश कुमार झा
मेरे प्यारे मालिक,
यह एक बेवकूफ औरत की चिट्ठी है।
क्या किसी बेवकूफ औरत ने लिखी है चिट्ठी आपको
इसके पहले?
मेरा नाम?
छोड़िए नाम में क्या रखा है,
रानी, जैनब, हिंद या हायफा।
हुजूर, हमारे लिए नाम है निहायत फालतू चीज।
(2)
मेरे मालिक,
डरती हूँ अपने मन की बात बताने से,
डरती हूँ कि अगर जुबां पे आएगी दिल की बात,
जन्नत में लग जाएगी आग।
क्योंकि मेरे प्यारे मालिक,
आपके पूरब में,
जब्त कर ली जाती हैं नीली चिट्ठियां,
औरतों के गुप्त खजाने से जब्त कर लिए जाते हैं ख्वाब,
रौंद दिए जाते हैं जज्बात,
औरतों से गुफ्तगू के लिए
इस्तेमाल होते हैं चाकू और खंज़र,
कत्ल कर दिए जाते हैं उनके वसंत,भावनाओं के ज्वार,
और उनके काले बालों के जूड़े।
मेरे प्यारे हुजूर,
आपके पूरब में बनता है नाजुक राजमुकुट,
औरतों की खोपड़ी से।
(3)
बुरा नहीं मानना मेरे मालिक,
अगर मेरा लिखा न हो उतना उम्दा।
क्योंकि जब लिखती हूँ मैं तो,
दरवाजे के पीछे होती है तलवार,
कमरे के बाहर हवा करती है सांय सांय,
कुत्ते भौकते हैं डरावनी आवाज़ में।
मेरे हुजूर,
कहीं पीछे खड़े हैं इतिहास के खौफनाक किरदार,
देख ली अगर उसने मेरी चिट्ठी,
मार दी जाऊँगी मैं।
कर देगा मेरा सर कलम,
किया उफ भी अगर मैंने।
देख ली उसने अगर मेरे कपड़ों का झीनापन,
सर धड़ से कर देगा अलग तुरंत।
क्योंकि मेरे प्यारे मालिक,
आपका पूरब घेर कर रखता है औरतों को खंज़रों से,
बना देता है मर्दों को पैग़ंबर,
औरतें मिला दी जाती हैं ग़र्द में।
(4)
मेरे प्यारे हुजूर,
नाराज मत होना इन हर्फों को पढ़ कर।
नाराज मत होना,
अगर सदियों की शिकायत का खोल दूँ पिटारा,
खोल दूँ गांठें अपनी चेतना के
चुपके से निकल आऊँ महलों के हरम की गुंबद से बाहर,
कर दूँ बगावत,
अपनी मौत से, कब्र से, अपनी जड़ों से
और
विशाल बूचड़खाने से।
नाराज मत होना , मेरे प्यारे मालिक,
पूरब के मर्दों के बारे में मेरी बात सुनकर
जिसे कद्र नहीं कविता की, जज्बातों की।
गुस्ताखी माफ करना हुजूर,
पूरब के मर्द नहीं समझते औरत को,
जबतक हो न वह बिस्तर पर उसके साथ।
(5)
मेरे प्यारे मालिक,
माफ करना मुझे,
अगर किया हो मैंने हमला मर्दों की सल्तनत पर,
क्योंकि महान साहित्य रही है बपौती मर्दों की,
प्यार पर रहा है हक मर्दों का,
सेक्स रहा है हमेशा,
मर्दों को बेचा जाने वाला नशा।
हमारे मुल्कों में औरत की आज़ादी का मतलब रहा है,
सठियाए हुए इंसान की बड़बड़,
क्योंकि आज़ादी होती है सिर्फ मर्दों के लिए।
मेरे मालिक,
खुलकर बताओ जो भी चाहते हो मुझसे,
चाहे कितनी ही हो फूहड़, बेमतलब, बेवकूफाना या बचकानी।
मुझे कुछ भी लेना देना नहीं इनसे,
क्योंकि जो भी लिखता है औरतों के हक में.
मर्दों की सोच चिपका देती है उसपर ठप्पा-
बेवकूफ औरत!
कहा था न मैंने आपको शुरू में ही-
मैं हूँ एक बेवकूफ औरत।
A Letter From A Stupid Woman-Nizar Qabbani (English Text)
जेरूसलेम
अनुवाद- राजेश कुमार झा
आँसुओं के सूख जाने तक रोता रहा मैं,
इबादत की मैंने तबतक, जलते रहे चिराग़ जबतक।
सज़दे में रहा तबतक, फर्श न चरमरा उठे जबतक
और पूछा मैंने मोहम्मद और ईसा मसीह के बारे में।
ऐ जेरूसलेम,
पैगंबरों की खुशबू,
धरती से आसमान के बीच सबसे छोटा रास्ता,
ऐ जेरूसलेम,
मर्यादा की सबसे बुलंद इमारत,
एक खूबसूरत बच्चा,
जिसकी जली हैं उंगलियां, झुकी हैं नजरें जमीन पर,
हो छायादार नखलिस्तान तुम्हीं गुजरे थे जहाँ से पैग़ंबर।
उदास हैं तुम्हारी गलियाँ,
शोक में डूबी हैं मीनारें।
काले कपड़ों में शोकाकुल जवान बेवा तुम्हीं हो।
कौन बजाता है शनिवार की सुबह,
अपने गाँव के गिरजे की घंटियां।
क्रिसमस के ठीक पहले की शाम,
कौन लाता है बच्चों के खिलौने।
ऐ जेरूसलेम,
ग़मों का शहर,
आँख में मचलती आँसू की बूंद,
मजहबों का मोती,
कौन रोकेगा तुम्हारे हमलावरों को?
कौन बचाएगा बाइबिल
करेगा हिफाज़त क़ुरान की?
ईसा मसीह को बचाएगा कौन,
करेगा इंसान की हिफाज़त कौन?
ऐ जेरूसलेम,
मेरे शहर,
ऐ जेरुसलेम,
मेरी मोहब्बत,
कब खिलेंगे संतरों के पेड़ों पर फूल,
मस्ती में झूमेंगे जैतून के पेड़?
नाचेंगी तुम्हारी आँखें,
तुम्हारे घरों की पवित्र छतों पर,
लौट आएंगे परदेसी कबूतर।
बच्चे खेलेंगे एक बार फिर,
तुम्हारी गुलाबी पहाड़ियों पर,
मिलेंगे बाप-बेटे।
मेरा शहर, जेरूसलेम,
अमन और जैतून का शहर।
***
Very Good, the poems and the translation.
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति
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धन्यवाद सर।
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