फिलिस्तीनी कवि समीह अल कासिम की तीन कविताएं

अनुवाद- राजेश झा

कवि परिचय- समीह अल कासिम ((1939-2014) फिलीस्तीनी-इजाराइली कवि, नाटककार एवं उपन्यास लेखक। अरबी भाषा के आधुनिक कवियों में अग्रगण्य। करीब 70 पुस्तकों के लेखक जिनमें अनेक कविता संग्रह भी शामिल। समीह अल कासिम की गिनती फिलिस्तीनी राष्ट्रीय संघर्ष के कवि के रूप में भी होती है। वे अपने को अंतर्राष्ट्रीय प्रतिरोध के कवि के रूप में देखते थे। उन्होंने वियतनाम युद्ध, लैटिन अमेरिकी संघर्ष और अमेरिका के नागरिक अधिकार आंदोलन जैसे विषयों पर भी कविताएं लिखी हैं।

  1. यात्रा टिकट

    जिस दिन मैं मारा जाऊंगा
    रायफल से मेरे मुर्दा शरीर की तलाशी लेते हुए
    हत्यारे को
    मिलेंगी यात्रा की कुछ टिकटें।

    एक शांति के लिए,
    दूसरी खेतों और बारिश के लिए
    तीसरी, मानवता के विवेक के लिए।

    मेरे प्रिय हत्यारे,
    गुजारिश करता हूं तुमसे
    यूं ही बैठे रहकर उन्हें बर्बाद न करना,
    ले जाना, इस्तेमाल करना।

    मैं हाथ जोड़कर कहता हूं,
    सफर पर निकल पड़ना।

    (English Text- TRAVEL TICKETS
    The day I’m killed,
    my killer, rifling through my pockets,
    will find travel tickets:
    One to peace,
    one to the fields and the rain,
    and one
    to the conscience of humankind.
    Dear killer of mine, I beg you:
    Do not stay and waste them.
    Take them, use them.)
  2. गुजारिश करता हूं- सफर पर जाओ

    ऐ मर्द
    ऐ औरत
    शेख, रब्बी और कार्डिनल
    ऐ नर्स और कपड़े की फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूर
    बहुत दिनों तक कर लिया तुमने इंतजार
    तुम्हारे दरवाजे पर डाकिए ने नहीं दी दस्तक
    डाकिए ने नहीं दी दस्तक
    नहीं लाया तुम्हारे चाहतों वाली चिट्ठी
    ऐ मर्द
    ऐ औरत
    मत करो इंतजार। मत करो।
    फेंक दो सोने वाले रात के कपड़े
    लिखो खुद को
    वे चिट्ठियां जो पाना चाहते हो तुम।

    (I beg you to travelEnglish Text
    You men!
    You women!
    You sheiks and rabbis and cardinals!
    And, you, nurses and textile workers!
    You have waited so long
    And the postman has not knocked on your door
    Bringing you the letters you desire

    You men!
    You women!
    Do not wait. Do not wait!
    Take off your sleeping clothes
    And write to yourselves
    The letters you desire
  3. राख
    तुम्हें नहीं लगता कितना कुछ खो दिया है हमने
    कि हमारे महान प्यार में बस बचे हैं कुछ शब्द,
    नहीं है अब बेताबी, चाहत की तड़प
    हमारे दिल में नहीं हैं असली खुशी, और जब मिलते हैं हम
    हमारी आंखों में होती नहीं हैरानी की चमक।

    तुम्हें नहीं लगता कि हमारी मुलाकातें हो गयी हैं ठंढी
    चुंबन भी हो चुके हैं ठंढे
    खो दिया है मिलने का जोश
    अब हम करते हैं बस इधर उधर की बातें?

    और भूल जाते हैं मिलना,
    बनाते है बहाने…
    तुम्हें नहीं लगता कि जल्दबाजी में लिखी हमारी छोटी छोटी चिट्ठियों
    में अब नहीं होता जज्बा, न जोश
    नहीं होती प्यार की फुसफुसाहट, न प्यार के सपने,
    कि हमारे जवाब होते हैं थके थके, बोझिल…

    तुम्हें नहीं लगता कि दुुनिया भरभरा कर गिर गयी है
    खड़ी हो गयी है दूसरी दुनिया
    कि दुखद और भयंकर होगा हमारा अंत
    क्योंकि अचानक नहीं आएगा यह अंत
    अंदर से आया है यह अंत।

    (3. Ashes– English Text
    Don’t you feel we have lost so much
    that our ‘ great ‘ love is now only words ,
    that there’s no more yearning , no urgency,
    no real joy in our hearts, and when we meet
    no wonder in our eyes?
    Don’t you feel our encounters are frozen ,
    our kisses cold,
    that we’ve lost the fervor of contact
    and now merely exchange polite talk ?
    Or we forget to meet at all
    and tell false excuses . . .
    Don’t you feel that our brief hurried letters
    lack feeling and spirit,
    contain no whispers or dreams of love ,
    that our responses are slow and burdened . . .
    Don’t you feel a world has tumbled down
    and another arisen ?
    That our end will be bitter and frightening
    because the end not fall on us suddenly
    but came from within)

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