अगली बार जब बैठूंगी रेलगाड़ी में (संजुक्ता घोषाल)

अनुवाद- राजेश कुमार झा

Photo: The Hindu

अगली बार जब बैठूंगी रेलगाड़ी में,
और खिड़की वाली सीट मिलेगी,
कोशिश नहीं करूंगी कि छुक छुक में
सुनाई दे ता-धिन, ता-धिन।
अगली बार जब बैठूंगी रेलगाड़ी में,
और हवा बिखरा देगी मेरे बालों को,
समझने की कोशिश नहीं करूंगी कि,
वो शहर की गंदी हवा थी या गांव की गुनगुनी बयार।
अगली बार जब बैठूंगी रेलगाड़ी में,
मूंगफली -चॉकलेट-चनाजोरगरम खाना नहीं सोचूंगी,
तलाशूंगी नहीं बैग के अंदर बचे खुचे टुकड़े।
अगली बार जब बैठूंगी रेलगाड़ी में,
नज़रें गड़ाकर नहीं देखूंगी पटरियां,
मिलती बिछड़ती, बिछड़ती मिलती जैसे खेल रही हों चूहे बिल्ली का खेल।
क्योंकि जब अगली बार जब बैठूंगी रेलगाड़ी में,
तो हमेशा याद आएगा मुझे कि,
कुचल दिए इसने दर्जन भर से ज्यादा लोग,
जो नहीं चाहते थे मरना।
अगली बार जब बैठूंगी रेलगाड़ी में,
यकीन है मुझे साफ साफ सुनाई देगी दबी दबी सी वो चीख,
जब ट्रेन के पहिए रौंद रहे होंगे उनकी छातियां।
अगली बार जब बैठूंगी रेलगाड़ी में,
करूंगी ईश्वर से प्रार्थना और दूंगी धन्यवाद
कि मुझे नहीं चलना पड़ा पांच सौ मील पैदल,
ताकि पहुंच सकूं घर, मिल सके भर पेट खाना।
अगली बार जब बैठूंगी रेलगाड़ी में,
सो जाऊंगी और देखूंगी सपने में बार-बे-क्यू कबाब,
दुःस्वप्न की तरह कौंधेगी,
पटरियों पर कड़क धूप में सूख रही रोटियां।
अगली बार जब बैठूंगी रेलगाड़ी में,
कहूंगी शुक्रिया कि बैठी हूं डब्बे के अंदर, पटरियों के नीचे नहीं,
शायद भाग्यवान हूं,
कि पैदा नहीं हुई मैं घर से दूर काम करते गरीब मजदूर की तरह।
अगली बार जब बैठूंगी रेलगाड़ी में,
याद आएगा मुझे उस फिल्म का दृश्य-
ज़िंदगी से ज़्यादा कमाई है मौत में (कितना दर्दनाक)
किस पर डालूं इल्जाम?
ड्राइवर जो समय पर रोक नहीं पाया गाड़ी,
या कि ट्रेन जिसने नहीं सुनी मालिक की आवाज़,
चला नहीं उसके हुक्म के मुताबिक?
या कि मजदूर, आख़िर क्यों सोए पटरियों पर,
बेचारे हरामी सो नहीं सकते थे चटाइयों या सड़क पर?
हां, आसान है गरीबों पर इल्जाम मढ़ना,
और वे तो हैं मरे हुए गरीब,
उन्होंने लिया इल्जाम अपने ऊपर
उनके बेटे-बेटियों-परिवार को नहीं हैं पैसे
कि आप पर करें मानहानि का मुकदमा,
क्योंकि सम्मानित लोगों की सूची में उनका नाम ही नहीं था कभी।

Next time I am on a train-Sanjukta Ghoshal- English Text https://docs.google.com/document/d/1kt4azEG6KfW7u2LZ374YoLsVCVO6v59LsIuNTtGzLqg/edit?usp=sharing

(https://thebombayreview.com/2020/07/09/poetry-next-time-im-on-a-train-by-sanjukta-ghoshal/)

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