नकली पत्र, पर असली शिक्षाएं- शिक्षक दिवस पर

(अब्राहम लिंकन का अपने पुत्र के शिक्षक को लिखा गया पत्र)


अनुवाद- राजेश कुमार झा

(यह पत्र इंटरनेट पर अब्राहम लिंकन के द्वारा अपने पुत्र के शिक्षक को लिखे गए पत्र के रूप में दिखाई देता है। लेकिन दरअसल यह लिंकन द्वारा लिखी चिट्ठी नहीं है। किसी अज्ञात व्यक्ति के द्वारा लिखी यह चिट्ठी काफी लोकप्रिय है। इसके कई स्वरूप मिलते हैं। अब्राहम लिंकन के द्वारा नहीं लिखे जाने के बावजूद इस पत्र का महत्व कम नहीं होता। यह शिक्षा के कुछ मौलिक तत्वों और जीवन-मूल्यों को रेखांकित करता है। प्रस्तुत है इसका हिंदी अनुवाद)


गुरुजी,
मैं जानता हूं कि मेरे बेटे को समझना होगा
कि सभी लोग न्यायप्रिय नहीं होते
सच्चे नहीं होते सभी लोग,
लेकिन उसे यह भी सिखाइएगा गुरुजी,
कि दुनिया में कहीं एक दुष्ट है तो सच्चे-भले लोग भी हैं अनेक,
स्वार्थी राजनेता हैं कहीं तो
लोगों की सेवा में समर्पित नेता भी हैं अनेक…

गुरूजी, उसे समझाइएगा कि अगर दुश्मन हैं दुनिया मेंं
तो दोस्त भी मिलते हैं यहीं।
गुरूजी, मैं जानता हूं कि इसमें वक्त लगेगा
लेकिन मुमकिन हो तो उसे समझाइएगा
कि कमाया हुआ एक रुपया
सड़क पर मिल गए पांच रुपये से, होता है अधिक कीमती।
गुरूजी, स्कूल में उसे सिखाइगा,
कि चोरी कर पास होने से कहीं बेहतर
और सम्मानजनक है फेल होना।

गुरूजी, उसे धैर्यपूर्वक हार को स्वीकार करना भी सिखाइएगा,
और जीत का आनंद उठाना भी।
उसे सिखाइएगा, भले लोगों के साथ रखे भलमनसाहत
और दुष्टों को दे उनकी ही भाषा में जवाब।
गुरूजी, उसे जल्दी ही यह भी सीखने का मौका दीजिएगा,
कि बहुत आसान होता है,
धौंस दिखाने, दबंगई करने वालों को औकात दिखाना, धूल चटाना।

मुमकिन हो तो, ईर्ष्या से दूर रहना सिखाइएगा उसे, गुरूजी
चुपचाप अकेले में मुस्कुराने का रहस्य भी उसे बताइएगा।
उसे उदासी में भी मुस्कुराने की कला सिखाइएगा,
बताइएगा कि आंसुओं में शर्मिंदगी नहीं होती,
और यह भी सिखाइएगा गुरूजी,
कि नाकामयाबी भी हो सकती है गर्व करने लायक
और सफलता हो सकती है शर्मनाक।

गुरूजी, टेढ़े-दिमाग और द्वेष रखने वालों से दूर रहना
सिखाइएगा मेरे बेटे को।
अगर हो सके तो उसे किताबों का
आनंद लेना, उनमें डूबना-उतराना सिखाइएगा, गुरुजी…

लेकिन उसे खुद के लिए थोड़ा वक्त भी दीजिएगा, गुरूजी,
जब वह आसमान में उड़ते पक्षियों के विस्मयकारी नज़ारे ,
दिन के उजाले में फूलों पर मंडराती मधुमक्खियों की मिहनत
हरे भरे पहाड़ों की ढलान पर उग रहे फूलो की खूबसूरती
जैसे अनंत रहस्यों पर चकित हो सके।

भीड़ के पीछे पीछे नहीं चलने का साहस दीजिएगा उसे, गुरूजी,
सुने सबकी बात, लेकिन सचाई की परख कर अपनाना
उसे सिखाइएगा,
भले ही सभी उसकी सोच को गलत क्यों न कहें,
उसे अपने विचारों पर भरोसा रखना सिखाइएगा, गुरूजी..

समझाइएगा उसे कि बेच सकता है अपनी प्रतिभा और बुद्धि
सबसे ऊंची कीमत लगाने वाले के हाथ
लेकिन कहिएगा कि कभी अपनी आत्मा और हृदय का सौदा न करे,
उसे खुद पर भरोसा रखना सिखाइएगा, गुरूजी
ताकि इंसानियत पर कर सके वह भरोसा।

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