बिछड़े प्रेमियों के लिए पत्र

अबुल कलाम आजाद

युवा कवि अबुल कलाम आजाद की कविताओं में आंतरिक तथा बाह्य सौंदर्य का अद्भुत सम्मिश्रण दिखाई देता है। वे अपनी गहनतम वास्तविकताओं को स्वर देते हैं और किसी अनन्त यात्रा पर निकल पड़ते हैं। उनकी यह प्रेम कविता तेलुगू पत्रिका सारंगा में मार्च 2019 में प्रकाशित हुई है।
जन्म- गुंटुर, आंध्रप्रदेश। वर्तमान में जापान में रह रहे।

Painting by Oswaldo Guayasamín (1909-99), Ecuador

अनुवाद- राजेश कुमार झा

मेरा शरीर,
जैसे बिना सुलगी सिगरेट
एक दूसरे से दूर लौ,
जैसे जल रहा हो चांद,
चाहे जो सूंघ ले उसे
मिलेंगे जब हम,
हमारी मोहब्बत होगी मानो राख,
जैसे हमारे बिस्तरों में छिपी सलवटें,
‘मुझ पे मर मिटो मेरी जान’
तुम्हारी छातियों के बीच होगी मेरी कब्र,
तुम्हारे होंठों पे सूखते होंगे मेरी मौत के शोक संदेश,
तुम्हारी आंखें
जैसे मेरे कब्र की शिला,
तुम्हारी पुतलियां,
जैसे जमी हुई मेरी प्रेम कविता।
रात के आकाश में
खोजती है तुम्हें मेरी उंगलियां,

शायद,
आकाशगंगाएं
हैं बिछड़े प्रेमियों की बेचैन लिखावट,
ब्रह्मांड,
उस कवि का उदास स्वप्न
जो मिल न सका प्रियतम से,
जिसने
अपनी बदहाली से बाहर आने से कर दिया हो इंकार।
सो रही है वो
प्रेमी की उंगलियों के छोरों पर
अपनी आंखों को भींच कर लिया है उसने बंद
नग्न हूं मैं तुम्हारे बिना
नाच रहा हूं अपने बिखरे ख्वाबों के साथ,
होंठों पर है मेरा टूटा फूटा संगीत।

ऐ मेरी प्रेमिका
सवार हो जाओ मुझ पर,
नोंच डालो मेरे पोर पोर,
बीत रही हो रात जैसे जैसे,
पहना दो मुझे अपने सुरमे की पोशाक।

अच्छा बताओ अगर नफरत हो तुम्हें मेरी आवाज से?
हमारे और तुम्हारे दिलों के बीच बह रही है जो
समुद्र की खुशबू
कर चुकी है तुम्हारे लफ्जों को दागदार,
ये खत तो हैं बस मेरे हाथों की फड़फड़ाहट
जो डूब रहे हैं समंदर की लहरों में
दूसरे किनारे पर कहीं दूर
इकट्ठा करता हूं मैं
पिरो कर बनाता हूं कोई प्रेम कविता
जिनसे कुरेद पाता हूं
तुम्हारी चाहतों की तहें
जितना भी चाहो मुझे छील दो तुम,
पहुंच जाओ मेरी हड्डियों के आखिऱी छोर पर,
जब तक हम बन न जाएं शून्य,
जहां छिपा सकें एक दूसरे के घाव

तुम्हारे साथ होकर
सहलाता रहूंगा तुम्हारे छिले होंठों को
चलता रहेगा चुंबन
टांग दूंगा अपने घायल दिल का झूला,
तुम्हारे कंधों की हड्डियों के गड्ढों में
तुम्हारे हाथों में डाले हाथ,
जाऊंगा तुम्हारे ढहते शहर के अनजाने मैखानों में
कुरेदूंगा निराशा की दीवारें
डगमगाता चलूंगा नशे में डूबी गलियों के बीच
गुप्तरोमों के बीच प्यार से तलाशेंगी मेरी उंगलियां,
मानो किसी भगोड़े के लिए बजा रही हो सीटी
अगर मैं होता….शायद मैं हूं
क्या हम बसते हैं वहीं
जहां बसता है हमारा प्यार?
शायद बाकी जिंदगियां हैं मृगमरीचिका
गायब होने का जो कर रही हैं इंतजार।
शायद अपनी जगह से खिसके दिलों में ही,
बसती है मोहब्बत।

Dispatches from Distant Lovers- Abul Kalam Azad- English Text

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