(अनुवाद- राजेश झा)

कुछ ही दिन पहले बांग्लादेश के अखबार डेली-स्टार में खबर छपी थी कि एक बुजुर्ग व्यक्ति को सिनेमा हॉल में इसलिए घुसने नहीं दिया गया क्योंकि उसने लुंगी पहन रखी थी। हालांकि बाद में सिनेमा-हॉल ने माफी मांगी और उन्हें बाइज्जत परिवार के साथ फिल्म देखने के लिए आमंत्रित किया। लेकिन इस घटना से कपड़ों के नाम पर किए जाने वाले सामाजिक वर्ग-विभेद की वास्तविकता जाहिर होती है। कवि कैसर हक की इस लंबी कविता में लुंगी के बहाने सामाजिक भेदभाव और पोशाक के बारे में हमारी औपनिवेशिक सोच पर गहरा कटाक्ष किया गया है।
कैसर हक ढाका में यूनिवर्सिटी ऑफ लिबरल आर्ट्स में प्रोफेसर हैं। वे ख्याति-प्राप्त कवि, लेखक, शिक्षाविद और आलोचक के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने बांग्लादेश की आजादी के संग्राम में भी हिस्सा लिया था।
दादा जी, आपके सामने अपनी बात रखने की इजाजत चाहूंगा
बस इसलिए कि जितनी बार मैं ‘पैसेज टु इंडिया’ पढ़ता हूं
मेरी नजर टिक जाती है ‘पैसेज फ्रॉम इंडिया’ पर
काल की छलांग लगाकर मैं कल्पना करता हूं कि शायद
मानचित्र पर पड़ी धुंधली रेखा को फांद कर
आप जाना चाहते थे अपने गंतव्य के पार
बांग्लादेश के भीतर।
इधर पोशाकों की बराबरी के बारे में
सोचता रहता हूं लगातार
इस लोकतांत्रिक आदर्श से
कितनी दूर हैं हम।
कितना पाखंड।
‘सभी पोशाकों को है बराबर हक।’
कोई भी इंकार नहीं करेगा
फिर भी,
कुछ कपड़े हैं दूसरों से ज्यादा बराबर
नहीं, मैं जैकेट और टाई के बारे में नहीं
कर रहा शिकायत
खास जगहों पर उनकी होती है जरूरत,
जैसे फैंसी ड्रेस की पार्टियों में
खेल की भावना के अनुरूप होता है ये।
मैं कुछ अधिक बुनियादी बातों के बारे में कह रहा हूं,
पूर्वी अफ्रीका से इंडोनेशिया तक
लाखों-करोड़ों लोग
लुंगी पहनते हैं जिसे कहीं
सारोंग, तो कहीं मुंडा, हटामेन, सारम
मावाईज, किटेंगे, कांगा तो कहीं काइकी कहते हैं
घर के बाहर और भीतर,
लोग इसे दिन रात पहनते हैं
जरा सोचिए-
दुनिया में किसी भी वक्त
लुंगी पहने लोगों की संख्या
अमेरिका की पूरी आबादी से अधिक होती है
एक बार जरा
लुंगी पहन कर व्हाइट हाउस जाने की कोशिश कीजिए,
लोकतंत्र के पू्जनीय इस स्थल पर, दादाजी
आप भी अंदर नहीं जा सकेंगे
शायद घुटने तक आने वाला स्कर्ट, किल्ट पहनें तो मुमकिन हो
लेकिन लुंगी? कतई नहीं।
आखिर क्यों? मैं सबसे कहता हूं,
सोचिए इस पर।
क्या सभ्यताओं का संघर्ष है यह?
कैसी बेवकूफी है यह
‘किल्ट’ हमारा है
लेकिन लुंगी, उनका!
नव-उपनिवेशवाद के बारे में भी सोचिए
और कपड़ों के अनकहे धौंस के बारे में,
कैसे सजीले सूट पहने भूरे और पीले साहब
मामूली लुंगी पहने हुए
अपने देशवासियों (और संबंधियों पर भी)
सिकोड़ते हैं नाक-भौं।
अपवाद से तो नियम ही साबित होता हैः
श्रीलंका में डिजाइनर लुंगी पहनकर लोग जाते हैं पार्टियों में,
म्यांमार में
आनेवाले महामहिमों और महानुभावों के स्वागत के लिए
राजनेता लुंगी पहनकर लाइन में खड़े होते हैं
लेकिन म्यांमार तो आखिर बांस की झिर्री के पीछे उंघता सा मुल्क है
दूसरों देशों के बीच आधे अछूत की तरह।
इंतजार कीजिए जब फैलैगा दुनिया भर में लुंगी का चलन,
सैविल रो इसके लिए
हासिल करेगा नए मॉडलों की खेप।
निजी स्थानों में भी धमक पड़ता है प्रभुत्व का मसला,
लेकिन मैं इतने पर नहीं छोड़ूंगा अपनी बात
परिस्थितियां बहुत ही खराब हैं
कुछ तो करना ही होगा
मैंने फैसला कर लिया है
यूं नहीं मान लूंगा हार, चुपचाप
अगली बार जब मुझपर करेगा कोई आक्षेप
कि हाथी दांत के महल में रहता हूं मैं,
शान से बताऊंगा कि मैं हूं लुंगी-आंदोलनकारी।
लुंगी से मोहब्बत करने वाले मेरे भाइयों, दोस्तों
चलिए आयोजित करते हैं लुंगी पार्टियों, लुंगी परेड
चलिए हॉलमार्क और आर्चिस में जाकर करते हैं लॉबी,
कि आयोजित हो अंतर्राष्ट्रीय लुंगी दिवस
जब संयुक्त राष्ट्र के महासचिव लुंगी पहनकर,
करें दुनिया को संबोधित।
दादा वाल्ट, मैं अपनी लुंगी का उत्सव मनाता हूं
गाता हूं गीत लुंगी के
आप भी पहनेंगे वही,
जो मैं पहनता हूं
वक्त आ गया है जब आप पूरी करें अपनी यात्रा
भारत से आगे, बंगलादेश के अंदर
कॉक्स बाजार के समुद्र तट पर बने कॉटेज में
(जिसे हम शान से कहते हैं दुनिया का सबसे बड़ा बीच)
लुंगी पहनकर मौज करें
और देखें सामने समुद्र में-
लुंगी पहन कर नहा रहे २८ नौजवानों को।
लेकिन आखिर ये है क्या
(विद्वान दोस्त, मैं लुई ब्रुमेल की तरफ इशारा कर रहा हूं)
मैं दुहराता हूं, आखिर ये है क्या
जिसके बारे में मैं कर रहा हूं इतनी बातें?
चौकोर आकार का कपड़े का टुकड़ा
सफेद, रंगीन, चेकदार या छीटदार
लंबाई चौड़ाई तकरीबन ४५ इंचx 80 इंच
लंबाई में आधा किया हुआ
सिला सिलाया
जैसे ट्यूब
जिसमें घुसकर कमर के पास
बांध सकते हैं आप खुलने वाली गांठ
सबके लिए एक ही साइज
और अगर कभी हो जाए मैला
बस बैठे रहिए,
पहन लीजिए उलट कर
जब लुंगी से बाहर हों आप,
मोड़कर बना लीजिए
स्कार्फ।
पहनते पहनते फट जाए तो भी
इसका है उपयोग
चाहे तो बर्तन साफ कर लें
या चाहें तो कर लें पोछे में इस्तेमाल
या बना लें कांथा-रजाई
कपड़े के ट्यूब के साथ खेल सकती है आपकी कल्पना
थ्योरी ऑफ एवरीथिंग के सुपरस्ट्रिंग में
कर सकते हैं इससे चित्रकारी
(इसी नाम की किताब, आदरणीय स्टीफन हॉकिंग का संदर्भ लें।)
बुनियादी मसले पर आएं वापस,
लुंगी है बड़े आकार के अंजीर का पत्ता, फिग लीफ,
आमलोगों के शिष्ट आचरण की आधारशिला
साल के अधिकांश वक्त, खाली देह रहना जब होता है शीतल
हो अगर दो लुंगियां आपके पास,
बिता सकते हैं आप एक अच्छी जिंदगी
चाहें तो नदी या पोखर में डुबो लें
या तैरें लुंगी पहन कर
छोटा कर लें तो बन जाती है लंगोट
पहन लें दूसरी लुंगी
तपते सूरज की रोशनी में
लुंगी बन सकती है अरबी साफा
या सिखों की पगड़ी
ठंढे मौसम में
लुंगी को बना सकते हैं गरमागरम मफलर,
लुंगी की लंगोट पहन कर सकते हैं कुश्ती
या चाहें तो खेलें कबड़्डी
फुटबॉल या क्रिकेट के मैदान पर
या मॉनसून के पानी को पार करते
इसे घुटनों तक मोड़कर
बना लें किल्ट।
संक्षेप में कहें तो
लुंगी है पूरी पोशाक
जिन्हें रुचि हो, उनके लिए है यह
समानता के प्रतीकों में शुमार
हाशिए पर ढकेले लोगों की पहचान
हंसी के बीच पले, थपेड़े खाए,
जमीन के लोगों की आवाज।
इससे भी अधिक,
अगर कामदेव का तीर लगा हो
लुंगी दो लोगों के लिए बन जाती है स्लीपिंग-बैग
कविता की किताब, सस्ती शराब की बोतल
अपनी प्रेमिका के साथ, लुंगी के भीतर
मिल जाता है स्वर्ग वहीं
भाग्य ने अगर नहीं दिया साथ
मॉनसून की बौछारें
बाइबिल की बाढ़ में हो जाएं तब्दील
घुस जाइए पानी के अंदर
हाथ से फुलाकर बना लीजिए लुंगी का बैलून
बस बन गयी आपकी नाव
पेड़ की फुनगी पर जब मिल जाए बसेरा
उतार लीजिए लुंगी
रगड़ कर धो लीजिए
आसमान में उड़ाइए ऊंचा
आपकी नासाज तबीयत का झंडा
और नाकारे तारों को दिखाकर जोर जोर से लहराइए,
अपनी लुंगी।
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