
(अनुवाद- राजेश कुमार झा)
कवि परिचय
अल्मोग बेहार (जन्म 1978) इज़राइल के युवा कवि, कहानीकार और लेखक हैं। उनके लेखन में इज़राइल के अंदर भाषा और संस्कृति के स्तर पर विभिन्न प्रकार की पृष्ठभूमि से आए लोगों, विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों के इतिहास के साथ इज़राइल पहुंचे लोगों की आशंकाओं और तनावों की अभिव्यक्ति दिखाई देती है। अल्मोग स्वयं यहूदी हैं और इज़राइल में उनका जन्म हुआ है लेकिन उनके माता-पिता और पूर्वजों की संस्कृति इराक, तुर्की और जर्मनी से जुड़ी हुई है।
उनकी कविताओं को बौद्धिक रूप से प्रवाहित होने वाली कविता कहा जाता है। वे भाषा और संस्कृति से जुड़े गंभीर दार्शनिक सवालों को अपनी साहित्यिक रचनाओं में बखूबी पिरोते हैं।
वे दरअसल ‘मिज़राही’ संस्कृति से जुड़े हैं। मिज़राही का हिब्रू में अर्थ होता है पूर्वी यानी वे यहूदी जिनकी जड़ें एशिया और अफ्रीका से जुड़ी होती हैं जिनमें भारत, ईरान, मध्य एशिया और अरबी बोलने वाले उत्तरी अफ्रीकी देशों से आए लोग शामिल होते हैं।
बेहार अपनी रचनाओं में यहूदियों की इस मिश्रित सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को उभारने की कोशिश करते हैं। उनकी कविताओं और कहानियों में अरबी और यहूदी भाषाओं तथा संस्कृति के बीच राजनीतिक रूप से पैदा की जा रही दूरी, नहीं पाटी जा सकने वाली दूरी के विरोध का स्वर सुनाई देता है। इज़राइल में दुनिया भर से आकर यहूदी बसे हैं। वहां बोली जाने वाली हिब्रू भाषा में भी उन संस्कृतियों और भाषाओं की ध्वनि निहित होना स्वाभाविक है। अल्मोग बेहार की कविताओं में इन सांस्कृतिक स्मृतियों और हिब्रू के अनेक रूप होने की संभावनाओं की अभिव्यक्ति देखी जा सकती है।
वे कहते हैं कि हिब्रू भाषा के अंदर कई भाषाओं के स्वर प्रवाहित होते हैं। हमें विरासत में जो भाषा मिलती है वह एक भाषा नहीं होती। भाषा की स्मृति राष्ट्र की स्मृति से कहीं पुरानी होती है। इस अर्थ में वे हिब्रू को शुद्ध रूप देने की कोशिश और इसे अरबी तथा अन्य भाषाओं के प्रभाव से मुक्त करने की कोशिश का विरोध करते हैं।
उनकी कोशिश रही है कि वे हिब्रू को उसके धार्मिक और संकीर्ण राष्ट्रवादी अनुनादों से मुक्त कर एक आधुनिक भाषा के रूप में स्थापित कर सकें।
वे मानते हैं कि ऐतिहासिक तौर पर अरबी यहूदियों की भाषा रही है और हिब्रू भाषा भी अरबी सांस्कृतिक परिवेश का हिस्सा रहा है। आज हिब्रू और अरबी जिस तरह एक दूसरे से कटे हुए हैं, अल्मोग उसे अपनी रचनाओं के द्वारा दूर करने की कोशिश करते हैं। वे यहूदी संस्कृति के अंदर अरबी को उचित स्थान दिलवाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। अपनी प्रसिद्ध कविता गूंगी है मेरी अरबी में अल्मोग बेहार कहते हैं-
‘गूंगी है मेरी अरबी
दबा हुआ है इसका गला
बिना बोले एक भी शब्द
कोस रही है खुद को
मेरे हृदय की घुटनभरी छांव में सो रही है अरबी
हिब्रू के दरवाज़ों के पीछे
अपने रिश्तेदारों से छिपकर बैठी है मेरी अरबी।’
अल्मोग बेहार कवि, कहानीकार और लेखक होने के साथ ही राजनीतिक और भाषा के क्षेत्र में सक्रिय कार्यकर्ता भी हैं । वे इज़राइल के अंदर सामाजिक न्याय, अरबी मूल के लोगों- फिलिस्तीनियों के घर ढहाने और उन्हें अपने घरों और इज़राइल से बाहर निकाले जाने के खिलाफ आंदोलनों में भी अपनी कविता के माध्यम से शामिल रहे हैं।
अपनी राजनीतिक-सांस्कृतिक गतिविधियों के बारे में अल्मोग बेहार का कहना है कि उनका उद्देश्य अस्मिता, संस्कृति और वर्ग पर आधारित राजनीति को साथ लाकर हीब्रू और अरबी लेखकों को एक मंच पर लाना है।
अल्मोग बेहार की अबतक कविताओं की तीन पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है। 2016 में प्रकाशित Poems for Prisoners, 2009 में प्रकाशित Thread Drawn from the Tongue और 2008 में प्रकाशित Well’s Thirst उनके तीन कविता संग्रह हैं। उन्होने उपन्यास और कहानियां भी लिखी हैं जिनका अनुवाद अरबी में हुआ है। उन्हें कई प्रतिष्ठित साहित्यिक सम्मान भी प्राप्त हुए हैं।
वे अभी जेरूसलेम के वैन-लीयर संस्थान में पोस्ट-डॉक्टोरल फेलो हैं।
प्रीमो लेवी के लिए
ऐसी जगहों में जहां प्रार्थनाएं नहीं बचा सकती हमें,
हरेक शब्द होती है प्रार्थना,
कटोरे से सूप पीना भी बन जाता है प्रार्थना का मधुर सुर,
शरीर पर पड़ने वाले घूंसे, ठंड, भूख और
तुम्हारी बाँह पर गोदी हुई संख्या,
वे भी प्रार्थना की किताबों से लायी गयी हैं।
जब ऑस्चविच के भारी दरवाजे खुले
और लोगों की परछाइयाँ बाहर निकली,
दरवाज़े के पास खड़ा था भगवान,
रो रो कर मांग रहा था माफी,
याचना कर रहा था लोगों से- माफ कर दो, मुझे कर दो माफ।
लाजिम है कि इंसान कर दे माफ इंसान को,
मगर भगवान को माफ करने से बुरा कुछ भी नहीं होता।
Lines to Primo Levi-Almog Behar-Israel-English Text
(विश्वरंग, जनवरी-मार्च 2021 में प्रकाशित)
तलवार पकड़े हाथ
हाथ और बंदूक के बीच उतना ही फ़ासला होता है,
जितना चुंबन और गालों के बीच।
जितनी मेरी जिंदगी और वर्तमान के बीच,
होता है जितना फ़ासला मेरे होंठ और उससे निकलने वाली चीख के दरमियान।
एक इंसान जमा करता है पतझड़ और सर्दियां,
चुप्पियों की भी आवाज़ होती है
उस समय जो बड़ा था फ़ासला,
बंदूक के घोड़े को दबाते ही हो गया खत्म।
शाम की हवा में बंदूक की गोली का हुनर,
चला जाता है आत्मा के आर पार
मेरी स्मृति में मौजूद है तलवार को पकड़ा हुआ वो हाथ,
जहां से शुरू होता है धरती पर इंसान का सफर।
भले ही बिखर गया हो जमीन पर,
नहीं सुनाई देती इतनी सी चीख
गर्म रहता है जबतक खून,
सीख लिया है लोगों ने इसे नज़रअंदाज़ करना।
हाथ और बंदूक के घोड़े के बीच की दूरी,
उतनी ही है जितनी गोली और मौत के बीच,
जितना होता है फ़ासला दीवार और इसकी दरारों के बीच,
जैसे पैदा होती है कोई लाश।
The Hand holds a Sword-Almog Behar-Israel-English Text
(विश्वरंग, जनवरी-मार्च 2021 में प्रकाशित)
अतीत की याद कहने से घबराहट नहीं
मैं घबड़ाता नहीं हूं कहने से
कि बीते वक्त की याद मुझे उदास करती है।
मैं घबड़ाता नहीं हूं
कहने से कि मेरे दिल में उठती है चाहतों की हूक।
कि बक्से में बंद स्मृतियों की गठरी में
बंद है मेरा अतीत।
मैं अपने लिए थोड़ी सी चाबियां खरीदने से घबड़ाता नहीं हूं।
दरवाज़े की फांक में आँखें डालकर झांकने से
घबड़ाता नहीं हूं मैं।
जब तक कि सब कुछ खुल न जाए,
अपने अंदर चुपके से मैं झांक न लूं,
घबड़ाता नहीं हूं कहने से,
कि भुलक्कड़ इंसान हूं मैं
लेकिन मेरे पास स्मृतियाँ हैं
जो मुझे भूल नहीं सकती।
Not to be afraid to say the word Nostalgia-Amlog Behar-Israel-English Text
(विश्वरंग, जनवरी-मार्च 2021 में प्रकाशित)
गूंगी है मेरी अरबी
गूंगी है मेरी अरबी
दबा हुआ है इसका गला
बिना बोले एक भी शब्द
कोस रही है खुद को
मेरे हृदय की घुटनभरी छांव में सो रही है अरबी
हिब्रू के दरवाज़ों के पीछे
अपने रिश्तेदारों से छिपकर बैठी है मेरी अरबी।
और मतवाला हुआ जा रहा है मेरा हिब्रू,
कूदता फांदता फिर रहा है इस कमरे से उस कमरे, पड़ोसियों की बाल्कनी में इधर से उधर
लोगों के बीच अपनी आवाज़ जाहिर करता
कर रहा है ईश्वर और बुल्डोज़र के आने की घोषणा
और फिर मेरे बैठक में जम कर बैठ जा रहा है मेरा हिब्रू
अपनी चमड़ी की भाषा में समझता हुआ खुद को बिंदास, खुला
अपने माँस के सफों के बीच छुपा है इस तरह
एक पल में बिलकुल नंगा, दूसरे ही पल पहन कर पोशाक
आराम से बैठ जाता है आराम कुर्सी में
मांगता है माफी, मेरा हिब्रू।
डर से मेरी अरबी हो गयी है सन्न,
चुपके से हिब्रू होने का कर रही है ढोंग
जब दरवाज़े पर दस्तक देते हैं दोस्त
कहती है फुसफुसाकर
‘स्वागत है अहलान, स्वागत है’
और जब गलियों में कभी पुलिस वाला दबोच लेता है इसे
निकालकर दिखाती है अपना परिचयपत्र
और इशारा करती है अपनी सुरक्षा वाले हिस्से की तरफ
अना मिन अल-यहूद, अना मिन अल-यहूद
-यहूदी हूं मैं, यहूदी हूं मैं
और बहरा है मेरा हिब्रू,
कभी कभी बहुत ही बहरा।
My Arabic is Mute- Amlog Behar-English Text
(विश्वरंग, जनवरी-मार्च 2021 में प्रकाशित)
अपने दिल के दरवाज़े बंद कर लेता है जेरुसलेम
अपने दिल के दरवाज़े बंद कर लेता है जेरुसलेम,
ऊंची ऊंची पहरे की मीनारों से ढांप लेता है खुद को
अपने और दूसरे की आँख के बीच
दीवार खड़ी कर देता है जेरुसलेम।
रात दर रात, सूरज के डूबने के बाद
पहनकर भारी पोशाक निकल पड़ता है
देखने कि सभी दरवाज़े ठीक से बंद हैं कि नहीं,
क्योंकि सभी बाशिंदे हैं क़ैद,
पेड़ों पर जड़ देता है ताले।
और रेगिस्तान से चीखती आती है कोई औरत
पत्थर की दीवारों पर पटकती है अपना हाथ
चीख चीख कर जाहिर करती है अपने दिल की बात-
आओ मेरे प्रियतम, चलें हम साथ खेतों की ओर,
रहेंगे गाँवों में हम।
भोर होने से थोड़ा पहले चलेंगे बगीचे की ओर।
सोता रहा जेरुसलेम, जगा नहीं उसका दिल।
और वो औरत उठाकर लोहे की भारी चाबियां,
लगाती है तालों में,
उसकी चीख,जगा देती है
शहर की गश्त लगा रहे वर्दीधारी पहरेदारों को
जो कर देते हैं उसके माँस को घायल, छिल जाती है उसकी चमड़ी
फाड़ देते हैं उसके कपड़े,
रात दर रात।
रोज रात चाँद के ढलने के पहले,
फांदकर दीवारें और साथ लेकर भागते
देवता जाते हैं पवित्र पहाड़ी की ओर,
रेगिस्तान की ढलान,
समंदर के किनारे,
बंद दरवाज़ों वाले शहर से दूर,
पहरेदारों से दूर।
Jerusalem Shuts her Heart-Amlog Behar-Israel- English Text
(विश्वरंग, जनवरी-मार्च 2021 में प्रकाशित)
द्विभाषी कविता
मैं द्विभाषी कविताएं लिखता हूं-
हिब्रू में और चुप्पी में।
और सोने के पहले दुनिया के नक्शे को पढ़ता हूं
ढूंढता हूं अपने लिए पलायन के रास्ते।
लिखता हूं भाषा के परे कविताएं-
शब्दों की नकल करते,
मैं चमचमाते संकेतों में लिखता हूं कविताएं।
लिहाफ के नीचे छुपकर बेचैनी से दुहराता हूं
छाया है वह, तस्वीर है वह, कैमरा है वह-
खून है, आदमी है, धरती है वह।
वह ईश्वर है, वह साया है, रक्षक है वह।
मैं कविता लिखता हूं-
अपने बाहर
प्रेमिका से संभोग करते हुए फुसफुसाता हूं-
मैं बनूंगा तुम्हारा पति और तुम होगी मेरी बीबी,
और इस तरह नहीं लेगा जन्म- एक नया धर्म।
मैं मिटाता हूं कविताएं-
हिब्रू में और चुप्पी में-
एक एक पंक्ति,
एक एक रात,
एक एक दिन
और सोने के पहले,
पढ़ता हूं दुनिया का नक्शा
ढूंढता हूं अपना नया- पुराना मुल्क
और आस्था की पगडंडियां
लंबी चुप्पी के बाद खुद से कहता हूं:
टूटी फूटी मिट्टी की पट्टियों से मूसा ने सिखाया था ‘तोरा’ का पाठ,
मेरे पास सोचने से खाली वक्त नहीं।
I write Bilingual Poetry-Almog Behar-English Text
(वागर्थ, अप्रैल 2021 में प्रकाशित)
जेरुसलेम का एक आंगन
जेरुसलेम के एक आंगन में लता और पत्थर के बीच,
उद और लादिनो की तान के बीच,
मेरे शरीर की दीवारों के बीच,
रात में उसने बनाए थे जो प्रेम के खरोंच, उनकी यादें मीठी हैं।
आंगन के छोर पर बनी धातु की पुरानी बाड़ के पास
जड़ी है एक बूढ़ी औरत जिसका ढंका है सिर,
प्रार्थना के बाद जब वह जा रही थी अपने घर,
किसी ने गली से खींच कर रख दिया है उसे,
चख रही है वह सरगम,
पल भर के लिए डूबी है कल्पना है कि फिर से बन चुकी है वह राजकुमारी,
जा रही है आंगन के पार।
और मेरे कानों के लिए निषिद्ध भाषा उद,
आंगन में आजाद हो गयी अपने बंधन से,
और मैंने जिसने खुद को सिखाया था पत्थरों से शहद चूसना,
अब सीख रहा हूं लड़की के मुंह से अमृत चखना। बूढ़ी औरत की आंखें,
हंसती हैं गाने वालों और नन्ही सी खूबसूरत गायिका के पीठ पीछे,
और मैं कल्पना करता हूं कि वह लगती है हूबहू मेरी दादी की तरह,
जिसने मरने के पहले फिर से अरबी बोलना शुरु कर दिया था,
हीब्रू का एक शब्द भी नहीं।
Almog Behar (Israel)- A Jerusalem Courtyard-English Text
(वागर्थ, अप्रैल 2021 में प्रकाशित)
ईश्वर के बारे में बच्चे से बातचीत
मैंने ईश्वर के बारे में अपने बच्चे को तबतक नहीं बताया,
जब तक वह तीन साल का नहीं हो गया,
मुझे लगा कहीं वह डर न जाए।
जब तीन साल का हो गया मेरा बेटा
मैंने ईश्वर से करवाया उसका परिचय।
ये मेरे भगवान हैं- मैंने बेटे से कहा।
ये मेरा बेटा है- मैंने अपने ईश्वर से कहा।
उन्होंने एक दूसरे के बारे में पूछे सवाल।
मेरे बेटे ने पूछा-
क्या आपका ईश्वर हमारा कोई संबंधी है जैसे-
हमारे दादाजी या चाचा?
नहीं, ऐसा नहीं है, मैंने बेटे को बताया।
मेरे भगवान ने पूछा-
तुम्हारे बेटे का नाम क्या है? मैंने कहा उसके कई नाम हैं-
जैसै मीठा और मिट्ठू, दुलारा और दुलदुल,
प्यारा और पीहू।
मेरे बेटे ने पूछा- आपके भगवान का क्या है नाम?
मैंने कहा उनके हैं अनेक नाम- वे पिता हैं हमारे, हमारे मालिक, धन्य हो उनका नाम-
दुनिया के स्वामी, परमपिता परमेश्वर और भगवान।
मेरा भगवान ने कहना शुरू किया, ‘तुम्हारा बेटा, इकलौता बेटा, प्यार करते हो जिसे तुम…’
मैंने दिखाया जैसे सुना ही नहीं मैंने।
मेरे बेटे ने पूछा-किसे ज्यादा प्यार करते हैं आप?
और मैं खुश हो गया कि उसके मुंह से निकला था शब्द ‘प्यार’।
मैंने तुरंत हटाया उसका ध्यान-
दिखाया आसमान में उड़ता हवाई जहाज,
और घास में सरकता गुबरैला।
मैंने उससे नहीं कहा कि ये सब बनाए हैं भगवान ने,
बस इतना कहा, सुंदर, है न?
Before My Son Turned five-Almog Behar-English Text
नया पथ, अक्टूबर-दिसंबर 2020 में प्रकाशित
पांच अर्थों वाली कविता
(a)
मैं रोशनाई से लिखी कविताओं के बदले
खरीदता हूं कागजी दया,
और माफी मांगता हूं डूबते सूरज से
जो चमक रहा है मेरी शुष्क गर्दन के पीछे।
मैं जोड़ता हूं ध्वनियां जिनका सिर्फ हिब्रू में होता है अर्थ
अपने पास आते तुम्हारे रास्ते की
कागज पर हिज्जे लगाने की करता हूं कोशिश।
(b)
मेरे दिल का दर्द मेरे दिल का हिस्सा-
ठीक वैसे ही जैसे मेरे दिल की खुशी है मेरे दिल का हिस्सा,
ठीक वैसे ही जैसे खोए हुए आंसू हैं मेरी रुलाई का हिस्सा
हिब्रू में सूखी नदी को भी नदी कहते हैं।
(c)
किसी अवसादग्रस्त यूनानी कवि ने पता लगाया था-
जगे हुए पुरुष एक सी दुनिया में होते हैं, एक साथ
और जब वे सोते हैं तो चले जाते हैं अपनी अपनी दुनिया में
और मैं अपने सपने में था तुम्हारे साथ,
जगा तो था अकेला।
(d)
किसी चीनी संत ने सिखाया है-
जिन्हें हमें फेंकना होता है ज़रूरी,
वे होती हैं बड़ी इकट्ठा करने वाली चीजों से,
क्योंकि जो भूल जाते हैं वे करते हैं इकट्ठा,
और जो याद करते हैं -फेंक देते हैं वे।
और मैंने उनसे कुछ भी नहीं सीखा।
(e)
इकलिएस्टिएस ने कहा था- स्मृति नहीं होती
और मैंने जब से इसे पढ़ा
मेरी जिंदगी से कभी नहीं जुदा हुआ यह वाक्य।
A poem in five meanings-Almog Behar- English Text
नया पथ, अक्टूबर-दिसंबर 2020 में प्रकाशित
दादाजी
इतहाक बेहार
मेरे बचपन में,
दादाजी का शरीर,
तेलअबीब के तट पर
समुद्र के पानी को रोकने वाला बांध होता था।
उनका पूरा का पूरा शरीर
बर्लिन के पुल से जमी हुई नदी में
कूदने की स्मृति होता था।
टूटे हुए दिल और टूटे परिवार का पूर्वानुमान होता था,
उनका टूटा हुआ पैर।
मेरे बचपन में,
समुद्र के किनारे टहलते हुए मेरी आँखें,
जफा के पत्थरों से लेकर
रीडिंग की धुंध और यारकोन के मुहाने तक,
और कई घरों को
देखती रहती थीं।
तब तक मैं नहीं सोचता था,
अपने बचपन के दूसरे शहरों के बारे में,
लहरों पर बिखरते नहीं दिखते थे शहर।
एज़रा गेहबन (1904-1986)
मेरे बचपन में,
दादाजी अपने हाथ पीछे बांधे रखते थे,
बेडरूम में अम्मी के साथ वाली तस्वीर में
उनकी जिंदगी का सूट
एक शरणार्थी की इच्छाओं के भीतर
सिल देता था उनका बदन
दादाजी जिए थे अस्सी के बाद दो साल और,
टिग्रिस नदी के किनारे खड़े खजूर के पेड़ों और
तोड़ दिए गए उस झरने से लेकर
नेतान्या के समुद्री तट को जाते शहर के बीचो बीच खड़े चौराहे तक,
गुज़री थी उनकी जिंदगी।
स्मृति वर्तमान के माँस में धंसा आँसू होता है,
और तस्वीर में मुस्कुरा रही है उनकी बेटी
उसने अब्बा के कंधों पर रखा है अपना सर,
सख्त दिखता है उनका चेहरा
पुराना झरना मौजूद है उनके पीछे
क्षितिज लगता है जैसे हो भूमध्यसागर का टब
जो नहीं करता नदियों की इज़्ज़त।
पीछे दिखते हैं म्यूनिसपैलिटी के लगाए सजावटी ताड़ के पेड़,
उनके माँस में उभड़ी सफेद मूंछ की छोटी सी कोपल,
काली टाई,
जैसे वे किसी दूसरी दुनिया से हों।
पल भर में वे अपना मुंह खोलेंगे
और कहेंगे, परदेस
जिसका मतलब होगा इज़राइल की धरती।
3
बरसों से कोशिश कर रहा हूं ,
कि हाथ पीछे बांध कर चल पाऊं
और पीठ रखूं हमेशा तनी, बिलकुल सीधी।
बरसों से कोशिश कर रहा हूं,
कि अपने पोते पोतियों के लिए
लहरों को रोक पाना सीख पाऊं,
बरसों से कोशिश कर रहा हूं,
कि सार्वजनिक पार्क में बैठकर
जेब में रखे छोटे चाकू से सेब को छील पाऊं,
खाऊं एक एक टुकड़ा।
बरसों से कोशिश कर रहा हूं,
कि हिब्रू शब्दों से फूल उकेर सकूं,
डर लगता है कि खो न जाएं,
दूसरी भाषाओं के रंग।
बरसों से याद कर रहा हूं
उन सभी शहरों के नाम
जिन्हें मैं बचपन में नहीं जानता था,
बना रहा हूं प्रार्थनाएं
उगा रहा हूं अपने शरीर पर स्मृतियों की नसें और त्वचा,
जो टकराती हैं लहरों से।
Grandfathers-Amlog Behar-Israel-English Text
क़ैदियों के लिए एक कविता
मैंने क़ैदियों के लिए एक कविता लिखी और अपने पिता को दिखाया। उन्होंने कहा- क्या भला होगा कैदियों का इन कविताओं से, और कौन संदेह करेगा जेलर के न्याय पर, और कौन होते हैं हम जो करें जेलर, जज और कानून बनाने वालों के न्याय पर संदेह? मैंने कहा- मैं जिन कैदियों के बारे में लिखता हूं वो तो हमलोग ही हैं। मैं रोज जाता हूं अपनी कालकोठरी में वापस, दूर से आती जेलर की आवाज़ का इंतज़ार। उनके हुक्म पर मैं पहन लूँगा हथकड़ियां, और अगर वे कहेंगे तो मैं खिड़कियों पर पटक पटक कर अपने हाथ मांगूंगा रिहाई की भीख।उन्होंने कहा- यह सब सपने देखने वाले कवि की बड़बड़ाहट है, लेकिन मेरे बच्चे तुम, आज जेल के दरवाज़ों से रहो दूर, मैंने जेल में जाने के लिए नहीं पैदा किए थे बच्चे,
मैं तुम्हें कानून की पढ़ाई के लिए भेजूंगा, शायद, अगर तुम चाहो।
शायद तुम बन जाओगे न्यायाधीश, कविताओं के बदले लिखोगे सजाएं ताकि कम हो सकें दुनिया के ग़म। मैंने जवाब दिया- अब्बू, मैं आपका बेटा हूं मैने डरने के लिए नहीं पैदा किए बच्चे। जानते हैं आप कि हम दोनों से बड़ा है जेल।
धीरे धीरे आ रहा है यह हम दोनों के करीब, और जेलर ने की है सिफारिश कि आप अपनी कैद को देखने से कर रहे हैं इंकार, कि आप कभी नहीं निकलना चाहते अपने कैदखाने से बाहर। उन्होंने कहा: ठीक है फिर, हम सभी हैं ईश्वर के कैदी, मेरे बच्चे, सभी उसके हुक्म का कर रहे हैं पालन, उसके कानून, घोषणाओं की कर रहे है तामीर, पुण्यात्मा भी ऐसा कोई नहीं जिसने न किया हो कोई पाप, क्या भूल गए तुम ये सब? मैंने कहा: पिताजी, इस कारागार को बनाया है इंसानों ने और हम रोज करते हैं उनके कामों में उनकी मदद, बनाते हैं जेल के अंदर नए कमरे, लगाते हैं कैमरे,
और बहुत जल्द उन्हें जरूरत नहीं होगी चौकीदारों की, सब हटा दिए जाएंगे नौकरी से और हम खुद करेंगे अपने ऊपर पहरेदारी। मैं नहीं जाऊँगा कहीं करने कानून की पढ़ाई, पर मैंने सोच लिया कि छोड़ दूँगा कविता लिखना। उन्होंने कहा: क्या निर्णय किया तुमने? लेकिन मैंने तो अपने कैदखाने में चारों तरफ, ऊपर नीचे घूम घूम कर कर दिया है ऐलान
कि मेरा बेटा लिखता है आज़ादी के तराने, बेटा, मेरे पड़ोसी अब सीख रहे हैं तुम्हारा गाना। मैंने कहा: सुन रहा हूं आपकी बात पिताजी लेकिन वो जो गा रहे हैं नहीं है वह मेरा गाना, पहरेदारों ने लिखे हैं वे गाने,
अब से मैं भी उनकी कविताओं से मुकाबला करने लिखूंगा कुछ वाक्य,
उनके फ़ैसलों के मुकाबले लिखूंगा फैसले। जेल की अपनी कोठरी से चिट्ठियाँ भी लिखूंगा, आपको और मां को, जिसमें मैं बताऊंगा
कि आज़ादी आपके पोतों के चले जाने तक नहीं आएगी, लंबा है संघर्ष
कविता जितने लंबे संघर्ष को कर सकती है बयान उससे भी लंबी, सभी कविताएं होती हैं नाकामयाब।
A poem for the prisoners-Amlog Behar-Israel- English Text
तिशा बाव 2003- जेरुसलेम
बदशकुनी वाले बाव के नौवें दिन के ठीक पहले की शाम,
अपने घरों की चारदीवारी के भीतर,
अगर हम करें रतिक्रिया तो शायद अपनी खाक से निकल कर बाहर फिर से जिंदा हो जाए शहर।
नींद में डूबे अल-सुबह नथुनों में भर जाएगी
पड़ोसी के रसोई से आती रोज़े की खुशबू,
आहिस्ता आहिस्ता खुल जाएगी हमारी नींद।
पहन कर पोशाक, इत्र से महकते ढूंढेंगे हम
पसीने में डूबी पड़ोस की गली में अपने लिए कोई ठिकाना,
वाशबेसिन का करेंगे मुआयना,
देखेंगे महीने की किस तारीख को देना पड़ेगा किराया
और जब मिल जाएगा किराए का मकान तो हम इत्मीनान करना चाहेंगे
कि नहीं है ये मकान अजर-अमर, कर सकते हैं हम इसमें थोड़ी बहुत तब्दीली,
करेंगे कोशिश की हो ये मामूली सा मकान, लगे हों जिसमें ढेर सारे टाइल्स, कुछ टूटे फूटे भी हों
और हो एक खिड़की जो खुलती हो पड़ोसी की खिड़की के सामने।
और अगर शहर की दीवारों में गूंजेगी सिसकियां फिर कभी
शायद साल भर में, हमारी मोहब्बत रहेगी जानदार तबतक
जगकर सुबह, एक बार फिर निकलेंगे ढूंढने मकान,
एक बिस्तरे वाला मकान,
जहां, ढेर सारे लोगों के इस शहर में,
लबालब भरकर छलक जाएगा प्यार।
Tisha B’av-2003- Amlog Behar-Israel-English Text
इस कविता की कॉपी कर लो तुम
कागज के किसी टुकड़े पर अपनी लिखाई में इस कविता की नकल कर लो, डाल दो इसके शब्दों के बीच अपने हृदय से निकले शब्द उसी कागज पर जिसपर तुमने की है इसकी नकल। गौर से देखो तुम्हारे हाथों से डाले गए शब्दों ने इसमें क्या जोड़ा है, कौमा, पूर्णविराम ने इसमें से क्या निकाल फेका है बाहर, भर दो शब्दों के बीच खाली जगह और जोड़ दो लकीरें जो टूटी हैं तुम्हारी जिंदगी में।
हजार बार करो इस कविता की नकल और बांट दो इसे शहर की मुख्य सड़क पर लोगों के बीच। कहो उनसे कि तुमने लिखी है यह कविता, तुमने लिखी है यह कविता, तुमने लिखी है कविता, हां तुमने लिखी है।
डालकर लिफाफे के अंदर भेज दो इस कविता को उसके पास जिसे तुम्हारा दिल चाहे और साथ में लगा दो एक छोटा सा ख़त। हाँ, भेजने के पहले बदल दो इसका शीर्षक और आखिर में जोड़ दो अपने लिखे कुछ दोहे। तल्ख़ लफ्जों में भर दो थोड़ी सी मिठास, खाली जगहों को कर दो गुलज़ार, टूट-फूट के बीच बना दो पुल, ऊबड़ खाबड़ हिस्सों को बना दो आसान, मुर्दानगी में भर दो जिंदगी का रस और सच को कर दो जाहिर।
कई कविताओं को अपना बना सकता है इंसान। इसी कविता को लेकर बना लो इसे अपनी कविता, भले ही इसमें ऐसा कुछ नहीं जो तुम्हें इसे अपना बनाने को करता है बेताब। यह कविता अपना हक नहीं जताती कि कविता होती है लिखने वाले की संपत्ति जिससे छेड़छाड़ का हक नहीं किसी को, अधिकार नहीं किसी को कुछ हटाने या जोड़ने का इसमें या पूछने का सवाल उस कविता से। लेकिन यह कविता कहती है कि जैसा जी चाहे करो जोड़ तोड़, निकाल दो या जोड़ दो इसके अंदर कुछ भी, मुफ्त है यह कविता, आजाद हो तुम चाहे जो करो इस कविता से, तुम्हारे लिए हाज़िर है ये, अपने हाथों जैसे चाहो बदल डालो इसे।
बना लो इस कविता को अपना, कर दो अपने हस्ताक्षर इसपर, मिटा दो पहले से लिखा नाम लेकिन इसे याद रखो और भूलो मत कि कविता का हर शब्द कविता की औलाद होती है और कविता किसी एक की नहीं बल्कि कइयों की होती है। और तुम्हारे बाद कोई तुम्हारी कविता को बना लेगा अपना और कवियों की संततियों को बताएगा, अपने बाद आने वालों को कहेगा कि इस कविता की नकल कर लो किसी कागज के टुकड़े पर और अपने हाथ के लिखे हर्फों से बना लो अपना।
Take this poem and copy it-Amlog Behar-Israel- English Text
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