(अनुवाद- राजेश कुमार झा)

उत्सव गान (जीवकांत)
गांव का कलाकार,
बांट रहा है प्रेम का संदेश,
दो लोग फूंक रहे हैं छोटी सी शहनाई,
छोटी सी डुग्गी पीट रहे हैं दो लोग।
बारिश की बूंदों के साथ छलक रहा है स्नेह,
बज रहा है उत्सव।
आत्मसमर्पण का सुख हो रहा है उदीयमान,
फैल रही है लालसा की खुशबू कि गिर पड़ूं प्रिय की अंजुरी में बनकर फूल।
है यहां प्रेम के लिए स्थान, विस्तृत स्थान
अपने जीवन सरोवर को उछाह दें अंजुरी से,
फिर भी भींगता है बस एक कोना,
तृप्त होता है बस केवल एक भाग,
फिर भी तृप्त होने के लिए बची रहती है जगह,
दिखाई देता है बहुत सारा खाली स्थान।
बूढ़े बजनियां की आंखें न खुली हैं और न हैं बंद,
न खोल रखे हैं कान उसने और न कर रखे हैं बंद,
बाएं हाथ से दे रहा है डुग्गी पर थाप डिग डिग,
दाहिने हाथ की लकड़ी से ठोक रहा है चमड़े का डुग डुग,
मिला रखा है उसने सहवादी से हाथ में हाथ,
कान से कान को मिलाकर उसने कर लिया है एक
वह अपने हाथ से नहीं रोएं रोएं से निकाल रहा है डुग्गी की आवाज
उसकी नस नस में प्रवाहित हो रहा है लाल-मटमैला खून।
डुग्गी पर थाप देकर
रच रहा है वह आत्म निवेदन का संगीत,
बज रही है शहनाई और डुग्गी,
कह रहे हैं मानव मन की व्यथा,
पूरा तो नहीं कह पा रहे,
क्यों कि पूरा कहने के लिए चाहिए और भी सौ बरस,
हजार बरस और,
डिग डिग, डिग डिग।
बजैये उत्सव-मूल मैथिली पाठ–
https://drive.google.com/open?id=1XSWc11dm-GF352YaUfeKWYIvCAfbRsf52cUIPRY_hxA

http://By NASA – http://grin.hq.nasa.gov/ABSTRACTS/GPN-2001-000013.html, Public Domain, https://commons.wikimedia.org/w/index.php?curid=32049
चंद्रारोहण (सोमदेव)
अब जा के समझा कि युद्ध का दूसरा अखाड़ा है चांद,
हे अंतरिक्ष के तानाशाह लड़ते लड़ते ही गिर पड़ो ऊपर से धरती पर-
एक हाथ में अणुबम, दूसरे हाथ में रॉकेट, मन की अंगुली पर सुदर्शन चक्र।
अपने बावन हाथ की आंत का बना लो उत्तरीय,
हम पृथ्वीवासी श्मशान में करेंगे तुम्हारी प्रतीक्षा।
हे विज्ञान के सारथी, अभी तो उतारा है आपने चंद्रगरुड़ चांद पर,
कल उतरेगा कि गेन्हाता हुआ विस्फोटक गीध, बाज, महाकाक,
और चलाएंगे यान को लाल,पीले, नीले नई नस्ल के पिल्ले…
वैसे उस दिन भी चांद तो चांद ही रहेगा,
धरती की तरह घाव से भरा कुतिया नहीं होगा चांद।
इसी कामना के साथ हे चंद्रयात्री हम भारतवासियों को गेहूं दो,
अपने बघनखे से कुरेद कर ले जाओ हमारा दार्शनिक हृदय।
चंद्रारोहण-सोमदेव-मूल मैथिली कविता
https://docs.google.com/document/d/1kBtC1fZTmqrdR2y0oYDSC8OeAsCllTxhCML4dZZGIhk/edit?usp=sharing

Photo credit- Chris Stewart / The Chronicle
नववर्ष (मायानंद मिश्र)
पुराना साल अपने केंचुए को,
पुरानी बीमारी की पुरानी परची की तरह छोड़ते,
स्वप्न के इंद्रधनुषी आकार को अपनी आंखों में समेटे,
डाकिए की तरह अपनी पीठ पर
साल भर की सद्भावना यात्रा के अनेक संधि पत्र लादे
उन संधिपत्रों के अनेक छद्मों, अनेक लाशों को ढोते,
धरती के अनेक अनेक असहाय मृत्यु,
अनेक मेंहदी लगे हाथों के रंगों को नष्ट किए जाने का मूक गवाह बनते
शर्म से सर नीचा किए,
बुढ़ऊ इतिहास धीरे धीरे नववर्ष के सिंहद्वार पर आकर खड़ा है।
क्षुब्ध होकर देख रहा है
पांच वर्ष के लिए लहूलुहान होकर कूड़ेदान में पड़े ख्वाबों को,
अनेक पथराई आंखों को।
और देख रहा है
सड़क गली के हिंसक जंगल को हांफते कांपते भागते,
इन हिंसक गलियों के अनेक स्याह कोने।
इतिहास देवता
अवाक हैं,
श्मशान में बहती हवा की तरह उदास हैं!
घर के पिछवाड़े खड़े अकेले ताड़ के पेड़ की तरह तटस्थ हैं।
मंदिर मस्जिद के गुंबदों की तरह हतप्रभ हैं।
और भविष्य?
भविष्य प्रेस के मैनेजर की तरह सतर्क भाव से
बैठा कर रहा है पांडुलिपि की प्रतीक्षा।
पता नहीं आखिर वह पांडुलिपि
सुखांत कथानक होगी या दुखांत।
नबका वर्ष-मायानंद मिश्र, मूल मैथिली कविता
https://docs.google.com/document/d/1UsmfNjK13sDYWyrkLMb7chyEMDDPfGUO5Hgrj3Jn0sY/edit?usp=sharing

एक दिन यूं ही अचानक (केदार कानन)
एक दिन यूं ही,
यूं ही हो जाऊंगा विलीन,
अचानक,
टेबुल पर पसरी रह जाएगी अनेक चिट्ठियां,
जिनका जवाब लिख नहीं पाऊंगा मैं।
मन में बची रह जाएगी अभिलाषा,
कि लिख नहीं पाया
जो चाहता था लिखना,
पत्र का जवाब तक नहीं लिख पाया,
अकस्मात ही छूट जाएंगे,
मित्र, बंधु, परिवार
सब छूट जाएंगे
अचानक
और विलीन हो जाऊंगा मैं।
मन में हूक लगी रह जाएगी,
कि बोया था जिस बीज को,
हो चुके हैं उसमें फूल सुंदर औऱ विशाल,
पेड़ों पर मंजर तो आ चुके हैं
लेकिन देख न सका उसके फल, एक बार चख न सका स्वाद,
ऐसे ही छूटते हैं राग और बंधन,
गीत लय ताल
जो प्रेम कर न सका अब तक,
सबसे अधिक,
उसी पर लगा रहेगा मन, सबसे अधिक।
लेकिन तब हाथ में कुछ भी न रहेगा,
कुछ भी नहीं,
अपने वश में।
विलीन हो जाऊंगा,
एक दिन यूं ही अचानक।
एक दिन एहिना -केदार कानन- मूल मैथिली कविता
https://docs.google.com/document/d/1ccv2KAY9zdjb8OhBkA-tkEYZxgkybZSimJrIZSMcPfA/edit?usp=sharing
(वागर्थ में प्रकाशित)
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