अनुवाद- राजेश कुमार झा

कवि परिचय– मेनका शिवदासानी के अबतक दो काव्य संग्रह Nirvana at Ten Rupees और Stet प्रकाशित हो चुके हैं। भारत के बंटवारे पर केंद्रित सिंधी कविताओं का उनके द्वारा किया गया अनुवाद साहित्य अकादमी से प्रकाशित हुआ है। वे कविताओं तथा साहित्य से संबंधित अनेक संस्थाओं एवं कार्यक्रमों से जुडी रही हैं।
चूहा कैसे मारें
तकरीबन नामुमकिन है यह काम,
वैसे आजकल गर्दन काटना हो गया है आसान।
लेकिन चूहों के मामले में ये है मुश्किल,
खाने की मेज के पीछे अचानक दिखती है एक पूंछ
और फिर गायब।
सुबह होने पर पता चलता है-
था यहीं पर कहीं,
क्योंकि दही के ऊपर जमी मलाई पर
दिख रहे हैं खुरचन के निशान,
रात में ढक्कन गिरा था झन्ना कर,
लेकिन किसी ने आवाज नहीं सुनी।
इसलिए हम इस्तेमाल करते हैं शांतिपूर्ण तरीकों का,
किसी ने बताया, पनीर का टुकड़ा होता है कारगर,
इसमें थोड़ा प्यार मिलाओ और
छिड़क दो जहर की एक दो बूंद।
देखते हैं जब इसपर लगी फफूंदी एक दो दिन बाद,
फेंक देते हैं बाहर।
फिर आती है चूहा मारने की दवा,
काली जैसे कोयले की डली,
भुरभुरी जैसे हमारा दिल,
हर कोने में डालकर दवा के टुकड़े,
हम समझते हैं हो गयी हर जगह सुरक्षित।
बनाए हैं हमने चारों तरफ अपने घर-
मुंबई से मोसुल,
काबुल से कश्मीर,
पेशावर से पेरिस,
सारी दुनिया है हमारा घर,
लेकिन चूहे भी तो हैं।
सोफा बन जाता है दुश्मन का बंकर,
कुतर दी जाती है इसकी पेंदी,
आपके झाड़ू और मारने की ख्वाहिश से बच निकलने के लिए,
बना लिए जाते हैं छेद,
अगर एक मारने में आपने पा ली कामयाबी,
सुरंगों में पैदा हो जाएंगे नौ और।
कभी कभार टीवी देखते हुए
या अपने धर्मग्रंथ पढ़ते हुए,
सोचने लगते हैं हम
हत्याओं औ अपनी आस्थाओं के बारे में।
नहीं चूहे को मारना आसान नहीं
लेकिन अपनी ही चमड़ी के नीचे,
दुश्मन के साथ कैसे जी सकते हैं हम।
Menka Shivdasanni- How to kill a rat- English Text

खरगोश कभी सोते क्यों नहीं?
मैंने कहीं पढ़ा था,
सलाद पत्ते होते हैं प्रकृति की बेहोशी की दवा।
इसलिए आखिरकार तीन बजे सुबह
मैंने थोड़ा सलाद बनाने का फैसला किया।
फ्रिज में तिलचट्टे थे,
लेकिन मैंने सब्जियों को अच्छी तरह धोया,
परत दर परत उन्हें छीला,
पत्तों के नीचे गुस्से में रेंगकर निकला उंघाया हुआ कीड़ा।
मगर सलाद के पत्ते थे तितर-बितर,
छितरे हुए बेतरतीब तश्तरी में,
जैसे गली में बिखरी होती है सूरज की किरणें।
इसलिए मैंने इस्तेमाल की दूसरी तरकीब,
जो घर संभालने वाली हर कवि-औरत को मालूम होती है।
मैंने एक चाकू लिया,
इसकी धार अंधेरे में जैसे कर रही थी जादू,
काटने लगी सलाद,
जम्हाई लेते हुए मैंने देखा,
सलाद के टुकड़े बदल रहे थे अजीब सी आकृतियों में।
मुझे नज़र आ रही थी कहीं एक दुल्हन,
जिसके पैर के अंगूठे का नाखून हो चुका था राख,
सास और पति ने कर दिया था दरवाजा बंद।
एक दूसरे टुकड़े में नज़र आ रहा था किसी नेता का चेहरा,
तीसरा, जैसे कोई बच्चा जो देख रहा हो फाड़कर आंखें,
पर आखिर तश्तरी क्यों दिख रही थी,
जैसे हो घायल हिरोशिमा?
मैं मुस्कुराते हुए नाजी की तरह,
लगी रही अपने काम में,
धुंधलाती सी स्मृतियों में याद आ रही थी वो फिल्म,
जिसमें नाजी ने अपने कैदी को बुलाया था
सिखाने गाजर काटना।
कहता जा रहा था वो- काटो, काटो,
गाजर के टुकड़े गिर ही रहे थे तब तक,
कि मुस्कुराते हुए उसने,
काट डाली कैदी की दो उंगलियां,
बोलता रहा वह काटो, काटो,
और मुस्कुराता रहा नाजी।
उस रात मुझे समझ में आया,
आखिर खरगोश कभी सोते क्यों नहीं।
Why Rabits Never Sleep- Menka Shivdasani-English Text

एक नास्तिक का कबूलनामा
मैं जब तेरह साल की थी,
विश्वास करती थी धरती मां के पैरों के पास
गिरी गुलाब की पंखुड़ियों में,
बिना नहाए खाती नहीं थी प्रसाद।
चौदह साल की थी मैं,
जब मंदिर की भीड़ में किसी ने,
झटक लिया था मेरा बटुआ,
साढ़े चौदह साल की उम्र में,
मुझे लगने लगा कि मेरी प्रार्थनाएं सुनकर,
भगवान नहीं मुस्कुराते।
वे मुस्कुरा ही नहीं सकते क्योंकि,
वे थे पत्थर की मूर्तियां।
पंद्रह की उम्र में बीटल्स बन गए थे मेरे भगवान,
चैनल 25करने लगी थी मुझे दीवाना,
तली मछली के साथ जिन के घूंट लेने लगी थी मैं।
विश्व धर्म दिवस पर भाषण किया था मैंने,
भगवान नहीं होता।
अठारह साल की थी मैं,
करती थी अपनी ही पूजा।
बीस की उम्र में,
मेरे गालों, मेरे बालों और गुलदस्ते में भी,
थी गुलाब की पंखुड़ियां,
जो उसने रात के खाने के बाद लौटते हुए दिए थे।
फिर उसने उठा लिया एक नश्तर,
काटकर अलग कर दिया फूलों को डंठल से,
मुरझा गयी मैं,
खुशबू ने कर दिया उसे मदहोश।
बाईस की उम्र,
पूजती नहीं मैं खुद को या उसे,
देखती हूं पूजाघर में रखी मूर्तियां,
उधेड़बुन में सोचती हूं,
कहीं हौले हौले मुस्कुरा तो नहीं रहे भगवान, फिर से।
The Atheist’s Confession-Menka Shivdasani-English Text

लौह स्त्री
लौह स्त्री हूं मैं,
निकली हूं उस तारे से जिसमें अभी हुआ नहीं विस्फोट,
धंसकर इस धरती में,
कर रही हूं सूरज के उगने का इंतजार।
धूमकेतुओं और कीचड़ में,
मेरा वक्त भी आएगा,
तबतक पड़ी हूं मैं यहीं,
और परिक्रमा कर रही है धरती।
तुम मुझे जला सकते हो,
कर सकते हो मेरे चीथड़े,
लेकिन भट्ठी की आग करती है मुझे आज़ाद,
उन कणों से जिनसे बनी हूं मैं।
हथौड़े की चोट से बना दो मुझे लोहे की चादर,
मैं बदल सकती हूं अपना रूप,
बन जाऊंगी हल,
और हिला दूंगी दुनिया को।
खींच कर मुझको बना दो तार,
लचीला और नाजुक,
बदले में दुनिया को दूंगी रोशनी।
मैं बिना टूटे खिंच सकती हूं,
क्योंकि लपटों से गुजरी हूं मैं,
कड़कती बिजली की तरह,
आजाद हुई हूं धूमकेतुओ से।
गला सकते हो, मिला सकते हो मुझे,
मगर और भी खरा बनकर निकलूंगी मैं,
बनकर चुंबकीय, हमले को तैयार,
अपने असली स्वरूप में, लौह स्त्री।
Iron Woman-Menka Shivdasani-English Text
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