अनुवाद- राजेश कुमार झा
कवि परिचय– अजमेर रोड़ पंजाबी तथा अंग्रेजी के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर माने जाते हैं। उन्होंने पंजाबी साहित्य की सीमाओं का विस्तार किया है और इसे एक नयी पहचान दी है। वे कवि, नाटककार और अनुवादक के रूप में प्रख्यात हैं। अब तक उनके पांच काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें संग्रह ‘लीला’ आधुनिक पंजाबी साहित्य में ऊंचा स्थान रखता है। आप्रवासी जीवन के अनुभवों के साथ ही मानव अस्तित्व के गहन प्रश्नों और राजनीतिक विषयों पर विशिष्ट अंतर्दृष्टि उनकी कविताओं की खास पहचान है। उनकी कविताओं की सरलता और व्यक्तिगत अनुभव की गहराई पाठक पर गहरा प्रभाव छोड़ती है। अजमेर रोड़ की कविताओं को पढ़ते हुए अहसास होता है कि आखिर कविता को क्यों साहित्य की एक विशिष्ट विधा के रूप में स्वीकार किया जाता है।

बड़ी संख्याओं का खेल
इंसान का दिमाग दरअसल गुणात्मक होता है,
हम सबको पता है कि,
गुलाबी और बैगनी, त्रिभुज और वृत्त कर देते हैं हमें तुरंत उत्तेजित,
करते रहते हैं हम बहस लगातार-
क्या सच है और क्या झूठ,
क्या सही है और क्या गलत।
मगर संख्याएं छूती हैं हमारा दिल शायद कभी कभार,
संख्याएं इजाद की मर्दों ने, धोखा देने एक दूसरे को।
मुझे पक्का यकीन है,
औरतों को संख्याओं से कुछ नहीं था लेना देना,
उनके पास थी और भी बड़ी जिम्मेदारियां,
मसलन कैसे बची रहे जिंदगी।
मगर बड़ी संख्याओं से खेलना हो सकता है दिलचस्प,
बल्कि काफी मजेदार हो सकता है यह खेल।
जैसे कल्पना कीजिए कि,
मैं कंकड़ों के ढेर पर बैठा गिन रहा हूं,
एक अरब कंकड़ियां बिना रुके,
जिसमें लगेंगे मुझे चौदह साल।
अगर मैं गिनना चाहूं कि
अफ्रीका पर है कितना कर्ज विदेशी अमीरों का,
तकरीबन 200 अरब,
तो गिनना हो जाएगा नामुमकिन,
मुझे जन्म लेना होगा चालीस बार,
और करनी होगी गिनती चौबीसों घंटों लगातार।
वैसे छोटे पैमाने पर चीजें हो सकती हैं थोड़ी आसान,
जैसे मान लें कर्ज की वजह से,
मरते हैं पचास लाख बच्चे हर साल,
जो दरअसल सच है,
और मरने वाला हर बच्चा रोता है दिन में सौ बार,
तो दस खरब चीखें तैरती रहेंगी हवा में,
सिर्फ पांच साल के भीतर।
याद रखिए कि ध्वनि तरंग जब हो जाती है पैदा एक बार,
खत्म नहीं होती कभी, मौजूद रहती है किसी न किसी शक्ल में,
कभी नहीं जाती धरती के बाहर।
अब किसी सुबह इनमें से कोई चीख,
अचानक टकरा जाती है आपसे,
कर देगी यह आपकी आत्मा को एक अरब टुकड़ों में चूर चूर।
लगेंगे चौदह बरस टुकड़ों को सहेजने में एक जगह।
हां, यह भी हो सकता है कि,
आपकी आत्मा से टकराएं दस खरब चीखें,
और कुछ भी न हो।
अधपका रूपक
मैंने उन पक्षियों के साथ उड़ान भरी है,
जो बनाते हैं घोंसला,
जहां होती है अच्छी फसल।
भटका हूं उन योगियों के साथ,
होते हैं कृषकाय,
गहरी नींद में सोते हैं इस दुनिया में।
शामिल हुआ हूं जंग में,
उन योद्धाओं के साथ
जो मांगते हैं एक गिलास शर्बत,
जब होती है जंग अपने चरम पर।
सफर किया है मैंने मनमौजियों के साथ,
जो नस्ल और रंग की सरहदो को कर चुके हैं पार,
विचरते हैं अपरिचित भूमि पर,
महासागरों के पार।
तैरता हं मैं,
अधपके रूपक के ऊपर,
कभी बनकर अंतरिक्ष युग का मसीहा,
तो कभी बनकर धोबी का कुत्ता।
आहिस्ता दस्तक दो
पहुंचो जब मेरी आत्मा की कुटिया पर,
दस्तक दो, आहिस्ता।
झटक कर खुल जाएंगे दरवाजे,
रोशनी का सैलाब,
पखार देगा तुम्हारे थके हुए पांव।
***
Leave a Reply