अनुवाद- राजेश कुमार झा
कवि परिचय- तेंजिंग सुनड्यू युवा तिब्बती कवि, लेखक और राजनीतिक कार्यकर्ता। तिब्बत की आजादी के आंदोलन में सक्रिय । चीन और भारत में तिब्बत का मामला उठाने की वजह में कई बार जेल जा चुके। माता पिता भारत में बसे तिब्बती शरणार्थी। कविताओं के लिए अनेक साहित्यिक सम्मान।
बंबई में तिब्बती
बंबई में तिब्बती
विदेशी नहीं होता।
वह चीनी ढाबे का रसोइया है,
हां, लोग समझते हैं कि
वह बीजिंग से भाग कर आया चीनी है।
परेल ब्रिज के नीचे
गरमियों में स्वेटर बेचता है तिब्बती,
लोग समझते हैं शायद कोई रिटायर बहादुर उसे।
बंबई में तिब्बती
थोड़े से तिब्बती लहजे में
फर्राटे से बंबइया हिंदी में गाली बकता है,
अगर भूल जाता है कोई लफ्ज,
इस्तेमाल कर लेता है तिब्बती,
जिसे सुनकर हंस पड़ते हैं पारसी।
बंबई में तिब्बती,
पसंद करता है मिड-डे पढ़ना,
रेडियो पर गाने सुनना,
पर उसे तिब्बती गाने की उम्मीद नहीं होती।
लाल बत्ती पर पकड़ता है बस,
चलती ट्रेन में कूद कर चढ़ता है,
लंबी अंधेरी गलियों से गुजरकर
अपनी खोली में आराम करता है, बंबई में तिब्बती।
उसे गुस्सा आता है,
जब देखकर उसे हंसते हैं लोग
पुकारते हैं, चिंग चौंग, पिंग पौंग।
अब थक चुका है, बंबई में तिब्बती,
चाहता है सोना, थोड़े सपने देखना।
11 बजे की विरार फास्ट पर,
पहुंच जाता है वह हिमालय।
सुबह की लोकल,
वापस ले आती है उसे चर्चगेट-
महानगर में, नए साम्राज्य में।
Tibetan in Mumbai-English Text
धर्मशाला की बारिश
धर्मशाला में जब बारिश होती है,
बूंदें पहन लेती हैं मुक्केबाजी के दस्ताने,
टिन वाली छत पर गिरती,
हजारों हजार बूंदे,
पीटती हैं छत को बेतहासा।
छत के नीचे, अंदर ही अंदर सुबकता है मेरा कमरा,
भिगो देता है मेरा बिस्तर, मेरे कागज़।
कभी कभार चालाक बारिश
कमरे के पीछे से,
घुस आती है चुपके चुपके,
धोखेबाज दीवारें, हल्के से उठा देती है अपनी एंड़ी,
घुस आता है मेरे कमरे में एक नन्हा सा सैलाब।
टापू पर बसे मुल्क की तरह, बिस्तर पर बैठा
देखता हूं बाढ़ में डूबे अपने देश को-
आजादी पर लिखे कुछ फुटकर नोट्स,
जेल में बिताए दिनों की यादें,
कॉलेज के दोस्तों की चिट्ठियां,
ब्रेड के टुकड़े, मैगी के लच्छे
उफनकर आते हैं की पानी सतह के ऊपर,
जैसे अचानक वापस आ गयी हो कोई,
भूली हुई याद।
तीन महीने मॉनसून की यातना,
नुकीली पत्तियों वाले देवदार के पेड़,
ढलते सूरज की रोशनी से दमकता बारिश में धुला हिमालय।
बंद नहीं होती जबतक बरसात,
रुक नहीं जाता पीटना मेरे कमरे को,
सांत्वना देना होगा मुझे टिन की छत को,
जो लगा है काम पर अपने अंग्रेजों के समय से,
शरण दी है न जाने कितने बेघरों को।
अब तो कब्जा है इस पर,
नेवलों, चूहों, छिपकलियों और मकड़ी का,
छोटा सा किराएदार मैं भी हूं यहां।
किराए के कमरे को घर कहना,
बनाता है विनम्र हमें।
अस्सी साल की कश्मीरी मकान मालकिन,
नहीं लौट सकती अपने घर को,
खूबसूरती की प्रतिस्पर्धा होती है हमारे बीच-
कहो कश्मीर या कि तिब्बत, तिब्बत या कि कश्मीर?
हर शाम लौटता हूं किराए के कमरे में,
लेकिन मरूंगा नहीं इस तरह मैं।
इससे निकलने का कोई तो रास्ता होगा?
अपने कमरे की तरह रोऊंगा नहीं मैं,
रो चुका हूं बहुत अब तक- कैदखाने में, निराशा के छोटे पलों में।
कोई तो रास्ता होगा यहां से निकलने का,
रो नहीं सकता मैं,
बहुत नम है मेरा कमरा, पहले से।
When it Rains in Dharamshala-English Text
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वाह लाजवाब
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Beautiful poems. Your translation seems to have retained the sensitivity of the original.👍
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