अनुवाद- राजेश कुमार झा
(कवि परिचय- फदील अल अज्जावी का जन्म 1940 में उत्तरी ईराक के किरकुक प्रांत में हुआ था। वे अरबी दुनिया के प्रतिष्ठित कवियों में गिने जाते हैं। अज्जावी का कहना है कि किरकुक की सांस्कृतिक विविधता ने उनकी कविताओं पर गहरा प्रभाव छोड़ा है। उन्हें ईराक की जेलों में भी वक्त बिताना पड़ा था। वे तत्कालीन पूर्वी जर्मनी में बस गए। उनका कहना है कि कविता झूठ को सच से अलग करती है और इसका काम है बेनकाब करना। कवि का काम है लोगों के अंदर सवाल पैदा करना और स्थापित मान्यताओं को तोड़ना।)

खाली वक्त में
अपने लंबे, बोरियत भरे, खाली वक्त में,
मैं बैठकर धरती के गोले से खेलता हूं।
मैं बिना पुलिस या पार्टियों के मुल्क बनाता हूं।
जहां खरीददार न पहुंचे,
ऐसे मुल्कों को खत्म कर देता हूं।
मैं बंजर रेगिस्तान में नदियां बहाता हूं,
महादेश और महासागर बनाता हूं,
और बाद में, अगर जरूरत हो, इस्तेमाल के लिए बचाकर रखता हूं।
मैं मुल्कों के नए, रंग बिरंगे नक्शे बनाता हूं-
जर्मनी को खिसकाकर व्हेलों से भरे प्रशांत महासागर ले जाता हूं,
गरीब शरणार्थियों को दस्यु-नौकाओं में बैठाकर
कुहरे के बीच बावेरिया के स्वर्गीय बगीचो की कल्पना करते,
इसके तट पर जाने देता हूं।
पलट देता हूं इंग्लैंड की जगह अफगानिस्तान से,
ताकि नौजवान पी सकें मुफ्त की हशीश,-
अगर महारानी की सरकार उन्हें दे इजाजत।
कंटीले बाड़ों और बारूदी सुरंगों से घिरा कुवैत,
लेकर रख देता हूं कोमोरो द्वीप के पास-
चंद्रग्रहण में जो बन जाता है चांद का टापू,
बेशक तेल के कुओं को रखता हूं मैं वैसे का वैसा।
ढोल-नगाड़ों के शोर के बीच,
बगदाद को पहुंचा देता हूं ताहिती टापू के पास,
लेकिन छोड़ देता हूं सउदी अरब को पड़ा अपने चिर-रेगिस्तान में,
ताकि बचा सके वह अपने ऊंटों की उम्दा नस्ल।
इस सबके पहले, वापस कर देता हूं अमेरिका,
आदिवासी इंडियनों के हवाले,
कि मिल सके इतिहास को न्याय, जो मिला नहीं बड़े वक्त से।
मैं जानता हूं कि दुनिया को बदलना नहीं है आसान,
लेकिन फिर भी जरूरी तो है यह।
(नया ज्ञानोदय, साहित्य वार्षिकी, जनवरी 2018 में प्रकाशित)
IN MY SPARE TIME-Fadhil Al Azzawi-Iraq- English Text
जादुई कविता
जादुई कविता लिखने से आसान कुछ भी नहीं,
अगर तुम्हारे पास हो मजबूत दिल और नेक इरादे,
यकीन मानो, मुश्किल नहीं है यह।
बांध दो बादलों में रस्सी,
झूलने दो इसका दूसरा सिरा।
बच्चे की तरह, चढ़ जाओ रस्सी पर, नीचे से ऊपर,
फेंक दो वापस, रस्सी हमारी तरफ।
और फिर करेंगे हम कोशिश तुम्हें ढूंढने की,
हर कविता में।
Magical Poem-Fadhil Al Azzawi-Iraq-English Text

हां, जिंदगी जी है मैंने
कबूल करता हूं कि मैंने जिंदगी जी है,
स्वाद लिया है बहुत सी चीजों का,
और भूला भी मैं हजारों को।
मैंने औरतों को प्यार किया है,
भूल गया हूं कितनी औरतें रोयी हैं मेरे लिए।
मुझे अच्छे वक्त के दोस्त मिले हैं,
और बुरे वक्त के भी।
मैं रहा हूं, भुला दिए गए पीड़ितों के साथ,
महसूस किया है जेल के अंदर चमड़े पर चाबुक का अहसास।
मैं बेइंसाफ अदालतों में हुआ हूं हाजिर,
अंधे प्यार के जुर्म में।
भटका हूं मैं रेगिस्तान से रेगिस्तान,
और लगाए हैं तंबू, परियों के देश में।
पिलाया है पानी अपने घोड़ो को पारिजात के वन में,
सोया हूं चोटों के साथ, दजला नदी के तट पर,
और कभी कभार महलों में शहंशाहों के साथ भी।
अंधेरे में तैर कर गया हूं, शहर दर शहर,
धूप में बैठा हूं, चला हूं बर्फ के बीच,
बदलता रहा हूं एक मुल्क से दूसरा मुल्क,
और साथ ही जूतों की जोड़ियां भी।
न जाने कितने रास्ते बंद किए मैंने,
सफर किया समंदर में, पार करना जिन्हें था न मुमकिन।
बारिश की घाटियों में,
अकाल के वक्त बोए मैंने बीज,
अंधेरे में जलाए हजारों चिराग।
चांद के साए में, आसमान के नीचे,
सिसकियां भरी है मैंने बूढ़े प्रेमी की तरह,
भटका हूं इस महादेश से उस महादेश।
न जाने कितनी बार बनाए मैंने सपनों के कागजी महल,
अदल बदल की हकीकत और मरीचिका।
मैंने सच भी बोला है और झूठ भी,
मैने थोड़ा यकीन किया है तो थोड़ शक भी,
पी है मैंने हर तरह की सिगरेट,
पुरानी से पुरानी शराब भी चखी है मैंने,
लिखी है जिंदगी की कविता।
इस दुनिया में हंसा हूं मैं बहुत,
और रोया भी हूं।
गुजर गया हूं रात की रोशनी की तरह।
मैं रहा हूं यहां और देखा भी है मैंने,
ठहरा हूं यहां और गुजर भी गया हूं।
कबूल करता हूं, हां, जिंदगी जी है मैंने।
Fadhil Al Azzawi-I Confess I have lived My life-Iraq-English Text
भाईचारा
आसमान को चीरती मीनार के अंदर,
शीशे के बंद कमरे में
एक नरकंकाल बैठा था मुझसे चिपक कर।
मेरे कंधे पर हाथ रखकर उसने कहा,
‘भाई हो तुम मेरे।’
लौ की ओर लपक रही एक तितली,
उसने मेरे हाथों में रख दी।
अंधेरे में सीढ़ियां उतरता, डगमगा रहा था मैं,
दुनिया मेरे पास आयी,
और रख दिया मेरी हथेली पर अपना दिल।
राख में लिपटे आग के शोलों
और खून के धब्बों से दागदार,
इसने जला डाले मेरे हाथ।
इंसान और उसके पहले आयी हकीकत के बीच,
हुई स्थायी संधि।
हवाओं और पेड़ के बीच,
हुई स्थायी संधि।
बुझा दो आग,
लौट जाने दो तितलियों को फूलों की ओर।
Great poems….great translation. Kudos!
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