अनुवादः राजेश कुमार झा
डेविड होर्ता की तीन कविताएं
डेविड होर्ता (जन्म 1949) मेक्सिको के महानतम कवियों में गिने जाते हैं। वे अपनी कविताओ में बिंब और प्रतीकों के साथ ही बिलकुल असामान्य शब्दावली का इस्तेमाल करते हैं। होर्ता की कविताएं असाधारण और जटिल हैं। उनका मानना है कि वे परंपरागत शैली में कविता लिखते हैं। अपनी कविताओं के बारे में होर्ता कहते हैं कि बिंबों का इस्तेमाल कर वह ऐसी कविता लिखने का प्रयत्न करते हैं जो हमें बाजार से थोड़ा किनारे रहकर जीने में मदद करे। वे स्पैनिश भाषा में लिखते हैं और उनकी कविताओं के 19 संकलन प्रकाशित हो चुके हैं।
रेगिस्तान
चाहता हूं,
कोई न भूले रेगिस्तान की चमक,
वक्त की सुलगती आग में सोती रहे रेत।
बनी रहे यूं ही, रेगीस्तान के सूनेपन में,
पहाड़ और घायल शरीर,
स्मृतियां और खंडहर।
चाहता हूं,
चमकता रहे हर घाव,
और आसमान के लाल चेहरे पर
चिपक जाए हर चुंबन, एक बार फिर।
प्रार्थना और गालियां,
शर्म और आह्लाद
रंग जाएं रेगिस्तान की ऊर्जा से।
चाहता हूं,
तुम्हें सुननी पड़े हमेशा,
चौराहों पर खून की फुसफुसाहट।
टुकड़ा टुकड़ा लाल आसमान,
हाथों से टपकती गहन वेदना,
निशानियां हैं उस वक्त की
जब उतरती है सुबह और उसकी कंपकंपाहट।
चाहता हूं,
कुछ भी न हो मुंह में-
न कोई इंसान, न कोई दूसरी चीज।
बड़ी सी परछांई के अंदर रहे हर कोई,
पुनर्जीवन की प्राचीन चमक,
हर चीज को कर दे नम।
चाहता हूं,
इस धरती की उड़ान में शामिल हों सब,
यहां होने के जादू में शामिल हों,
बिल्लियां और गिद्ध,
कुत्ते और गोह,
बंजर जमीन और फूलों का बगीचा,
सोती हुई जलकुंभी और तन कर खड़ी जटामासी।
चाहता हूं,
दिन के घंटों की नग्न ताल पर,
आए रेगिस्तान और हो जाए गायब,
दिन में घुलता जाए घंटा,
साल कुतरता रहे दिन को।
Desert-David Huerta-Mexico-English Text
अयोजिनापा
(य़ह कविता 2014 में लिखी गयी थी जब मेक्सिको के एक कॉलेज के छात्रों और शिक्षकों को पुलिस ने उस समय हिरासत में ले लिया था जब वे किसी विरोध प्रदर्शन में शामिल होने जा रहे थे। पुलिस ने उन्हें स्थानीय ड्रग माफिया के हवाले कर दिया। माफिया ने उन्हें प्रताड़ित कर मार दिया। उनकी लाशें क्षत-विक्षत कर, जला दी गयी और फिर नाले में फेक दी गयी। होर्ता की यह एक प्रसिद्ध कविता है।)
हम परछाइयों में दांत गड़ाते हैं
और मुर्दे बाहर निकल आते हैं-
जैसे हों रोशनी या फल,
या खून की परखनली,
जैसे गड्ढे से निकल आएं हो पत्थर,
जैसे आंत की कोमल रसों में,
उग आई हो पत्तियां और टहनियां।
मृतकों के हाथ डूबे हैं संताप में,
हवा के कफन से अकड़ चुके हाथ,
अपने साथ अनंत व्यथा को लाने के,
कर रहे इशारे।
भाइयों और बहनों,
यह गड्ढों का मुल्क है,
आक्रंदनों का देश,
आग में जलते शिशुओं की भूमि,
प्रताड़ित स्त्रियों का राष्ट्र।
वह देश जो कल तक था मुश्किल से एक देश,
आज भुला दिया गया है उसका कल।
नशीले धुएं के नर्क में
अपनी ओर खींचती आग से लाचार,
गुम हो चुके हैं हम।
हमारी आंखें खुली हैं,
जिसमें ठूसकर भरे हैं कांच के टुकड़े।
जो मर चुके हैं, हो चुके हैं गायब,
उनकी तरफ बढ़ाते हैं हम अपने जिंदा हाथ,
मगर अनंत दृष्टियों के इशारे करते वे,
ठिठक जाते हैं, हट जाते हैं पीछे।
रोटियां जल चुकी हैं,
जड़ों से उखड़ चुका है, जल चुका है जिंदगी का चेहरा,
न कोई हाथ है, न मुल्क, न कोई चेहरा।
आंसुओं से डूबी एक कंपन बची है और लंबी चीत्कार,
हम समझ नहीं पाते,
कौन है जिंदा, कौन मृत।
इसे पढ़ने वालों को समझना होगा,
कि टूटी हुई आत्मा की पहचान की तरह,
उन्हें फेंक दिया गया है
शहरों के धुएं के समंदर में।
इसे पढ़ने वालों को समझना होगा,
कि इस सबके बावजूद,
मरने वाले न कहीं गए हैं,
न ही उन्हें किया गया है गायब।
बरकरार है मरने वाले का जादू,
सूरज के उगने में और चम्मच में,
पैरों में और मक्के के खेतों में,
तस्वीरों में और नदियों में।
हमने दी है इस तिलस्म को,
हवाओं की रुपहली शांति।
अपने मरने वालों को,
जवानी से भरपूर लाशों को,
हमने दी है आसमान की रोटी,
पानी का झरना,
उदासियों का वैभव,
अपनी हिकारतों की सफेदी
और जिंदा बचे लोगों की, टूटकर बिखरी यादें।
अब दोस्तों बेहतर है चुप रहना,
अपने हाथों और दिमाग को खोलना,
ताकि हम इस शापित भूमि से
कर सकें अलग,
टुकड़े टुकड़े हृदय के अवशेष,
जो अब भी हैं या थे कभी।
Ayotzinapa-David Huerta-Mexico- English Text
बेचैनी का गान
गेरू रंग से भरे आकाश में बेचैनी,
आंत की रेशमी भूलभुलैया में बेचैनी,
कलाकार की दो और तीन निब में बेचैनी,
मक्के के खेतों में बेचैनी,
सपाट चूतड़ वाली औरत,
और उसके दोस्तों की घबड़ाहट भरी छेड़छाड़ से-
गुलाब के बागों में बेचैनी।
पारदर्शी और कीचड़ से सनी चेहरे वाले
पानी में बेचैनी,
हवा के नीले अंगों से बेचैनी,
कीड़ों के करीब होने में बेचैनी,
टिटहरी के ज़र्द पंखों के सामने बेचैनी,
जग में बेचैनी, कप में बेचैनी,
घर की चहारदीवारी में बेचैनी,
खुली हवा में बेचैनी,
हल्के से रंगे कुतुबनुमा के दक्षिण में बेचैनी,
उत्तर में बेचैनी,
पश्चिम की गू और पूरब के मूत में बेचैनी,
गर्भ को दैवी शक्ति से भुला रही-
विषुवत रेखा से बेचैनी,
जो होनी नहीं चाहिए,
वैसे रंगरोगन किए लिंग से बेचैनी,
विशाल नदियों और छोटे नालों से बेचैनी,
नरकंकाल के घुटे हुए सर पर बेचैनी,
धूसर रंग के स्केच में सड़े बालों से बेचैनी,
भगवान के चमकते मुखौटे से बेचैनी,
चूतड़ों के गोल गोल या गंदी शक्ल से बेचैनी,
सड़क के किनारे पड़ी पड़ी लाश से और उसकी आत्मा से बेचैनी,
और बाथरूम की रोमांचक आत्मीयता से बेचैनी।
अच्छी कविताएं। मैक्सिको हो या भारत, ये दूरतक व्यंजित होती हैं।
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बेहतरीन कवितायेँ, बेहतरीन अनुवाद !!
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