अनुवाद-राजेश कुमार झा
पहले की पोस्ट में क्वामे दावेस की दो कविताओं का अनुवाद था। उनकी चार और कविताओं का अनुवाद इस खंड में।
क्वामे दावेस- जन्म 1962। घाना। उन्होंने अपना बचपन जमैका में बिताया। वे कैरिबियाई संगीत और लय, खासकर रेगे संगीत से गहरे तौर पर प्रभावित हैं। आधुनिक अफ्रीकी कवियों में उनकी आवाज की एक खास पहचान मानी जाती है। कवि, आलोचक, कलाकार, तथा संगीतकार के रूप में प्रतिष्ठित क्वामे दावेस अनेक साहित्यित पुरस्कारों से सम्मानित हैं। उनकी कविताओं की लयात्मकता एक खास प्रभाव छोड़ती हैं।
कहते हैं कि क्वामे दावेस की कविताएं हमें सिखाती हैं कि बिना टूटे, विलाप कैसे करें। क्योंकि उनकी कविताएं तब पढ़ी जानी चाहिए जब आप कमरे में अकेले हों और बातें खत्म हो चुकी हों।
कविता लिखने के पहले
बेशर्म हवाओं से निकली आवाज़ की तरह,
कविता के बाहर आने के पहले,
सोना होता है कवि को एक करवट साल भर,
खानी होती है सूखी रोटी,
पीना पड़ता है हिसाब से दिया गया पानी।
कवि को डालनी होती है घास के ऊपर रेत,
बनानी होती है अपने शहर की दीवारें,
घेरना होता है दीवारों को बंदूक की गोली से,
बंद करनी होती है शहर में संगीत की धुन ।
कवि की जीभ हो जाती है भारी,
रस्सियां बंध जाती हैं बदन में,
अंग प्रत्यंग हो जाते हैं शिथिल।
उलझता है वह खुदा से–
पूछता है–क्या है कविता का अर्थ।
पड़ा रहता है एक सौ नब्बे दिनों तक,
बदलकर करवट दूसरी तरफ,
परिजनों को दिए घावों से हो जाती है छलनी देह,
मांगता है वह दया की भीख।
कविता लिखने से पहले,
कवि को करना पड़ता है यह सब,
ताकि सर्दियों के मौसम के बीच,
निकले जब वह सैर पर,
न हो चेहरे पर सलवटें,
आँखों में हो एक लाचार बेबसी–
जिसे लोग कहते हैं शांति,
अपनी गठरी में लिए बौराए हुए थोड़े से शब्द,
हरे रंग और उन आवाजों के बारे में,
जो बुदबुदाती हैं सपने में, रंडियां।
Kwame Dawes-Rituals Before the poem (English Text)
(वागर्थ, अगस्त 2017 में प्रकाशित)
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नमक
हमारे जख्म सिखाते हैं हमें नमक चखना,
अपनी चमड़ी पर पसरे पसीने का, खून का।
आजकल मिलती है जब देह से देह,
चाटते हैं उंगलियां और चेहरे,
चाहते हैं महसूस करना,
पसीने का बहना, खून का रिसना।
चखते हैं स्वाद,
त्वचा में बसे पसीने की बदबू और
जीभ में रमी कस्तूरी का,
होंठों की दरारों,
प्रगाढ़ चुंबन,
समंदर से आती हवा,
उमड़ती धूल,
कोको की फलियों,
खंडहरों से उड़ती ग़ुबार में बसे नमक का।
फिर आती है ,
खुशबू बगीचे में उगे सफेद बैगन की सब्जी की और
ताज्जुब शहद की।
आती है भीनी महक,
शाम की ठंढी हवाओं
और अचानक गहरे होते अंधेरे की।
पहाड़ों की छांव की ओर उमड़ते, घुमड़ते, कुलांचे भरते,
पोर्ट ऑफ प्रिंस के आसमान में घिरते बादल,
छोड़ जाते हैं हमारी त्वचा पर-
बिन बताए गिरती बारिस की बूंदों की मिठास।
Salt-Kwame Dawes (Original English Text)
(वागर्थ, अगस्त 2017 में प्रकाशित)
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निशाने पर
सिपाही के बगल में खड़ा है कवि,
पहन रखी है उसने पीली पोशाक–
हाथ में धूसर रंग की रोशनाई की दवात,
जैसे खून का रक्षा कवच।
दूसरे हाथ में रंग की कूची
जिसके बाल सिमटकर बन चुके हैं गांठ।
बाहर की दुनिया करेगी
मीठी शांति के रोष पर अचरज,
खड़ा कर देगी एक भगवान,
जिसने इतिहास में
पापियों की क्षत विक्षत लाशों से पाट रखी थी गलियां,
जो समझता है बदबू मारती लाशों की भाषा,
जिसे मालूम है करुणा और स्मृतियों का गायब हो जाना।
जिसके दुख की चरम घड़ी थी वह,
जब एक कृषकाय इंसान की देह–
फैला दी गई, चीर दी गई,
लकड़ी की तख्त पर।
आना ही होगा कवि को शहर में,
और लिखनी होगी हाइकू,
उनकी ललाटों पर,
जो अकचकाए हुए विलाप करते हैं
इंसान की क्रूरता पर।
सेन्ना की चित्रलिपि पर–
उकेरी देववाणी,
निशान,
पहचान या
चेहरे की चौखट पर खिची–
आशा की लकीरों पर।
रोना ही होगा कवि को,
जब वह आएगा वापस,
वादों के खून से –
होंगे उसके कपड़े दागदार,
पांव होंगे चिपचिपे,
हताशा के छलकते रक्त से।
चलता रहता है ऐसा ही।
Marked-Kwame Dawes (Original English Text)
(नया पथ, अक्टूबर 2017- मार्च 2018 में प्रकाशित)
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दो सौ साल की औरत
मुश्किल है नापसंद करना–
औरत जो खड़ी है सड़क के किनारे
लिए हाथों में पानी की बाल्टी
बिल्कुल मामूली
लेकिन आंखें पुरानी जितनी हो कोई भी चीज आसपास,
आश्वस्त करती कि सब ठीक है।
कौन नहीं चाहेगा सुनना उसे,
रात के आखिरी पहर,
गा रही लोरी,
ताकि हो जाए शांत तुम्हारा मन,
सो जाओ तुम।
क्योंकि तुम्हें पता है कि
जगोगे जब तुम, होगी तुम्हारे साथ,
हाथों से आती होगी खुशबू प्याज, अजवाइन, लहसुन की,
छलछलाती आंखों में अब भी चमकते होंगे सवाल और जवाब भी,
धूल की तरह चित्तीदार उसकी त्वचा,
गहरी आवाज
देंगी तसल्ली तुम्हें।
बेशक। मुझपर दोष नहीं मढ़ोगे तुम कि–
ढूंढ रहा हूँ क्यों उस औरत को पहाड़ों पर,
सर पर बांध रखा है साफा,
ओस की बूंदों और घनी झाड़ियों में उलझकर दागदार,
पहनी है जिसने लंबी स्कर्ट।
जिसकी बांहें हैं तनी, सख्त जैसे पेड़ की टहनी,
जो सुनेगी हमारे पापों की कहानी
और कहेगी,
जिंदा रहोगे तुम कल भी।
वो औरत–
रोग से जर्जर हो चुकी तुम्हारी देह का करेगी आलिंगन
और बताएगी तुम्हें
कि इतना मुश्किल नहीं है नदी के उस पार जाना,
जितना तुम समझते हो,
कि इतनी कम भी नहीं है रोशनी कब्र के अंदर
जितना तुम सोचते हो।
ढूंढ रहे हैं उस औरत को हम,
जिसने छुपा रखी है दो सदियां अपनी त्वचा के भीतर,
सहलाकर तुम्हें जो कहती है-
कुछ चीजें होती हैं आकाश से भी विशाल,
आज के दिन से भी लंबी।
हमें डर है सबसे ज्यादा कि,
उसे ढूंढते बिता देंगे हम बरस के बरस
पर मिल नहीं पाएगी हमें वो औरत।
डरता हूँ इसी से,
किसी दुःस्वप्न से भी ज्यादा।
Kwame Dawes-The Old Woman on the Road (English Text)
(नया पथ, अक्टूबर 2017- मार्च 2018 में प्रकाशित)
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