विस्लावा सिंबोर्सका की कविताएं

विस्लावा सिंबोर्र्स्का- पोलिश कवि। जन्म 1923, मृत्यु 2012। साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से 1996 में सम्मानित। सिंबोर्स्का की कविताएं अपनी सादगी के भीतर छिपे गूढ़ एवं गंभीर निहितार्थों के लिए जानी जाती हैं। घरेलू जिंदगी के बिंबों को महान ऐतिहासिक संदर्भों से जोड़ने वाली इनकी कविताओं का चुटीलापन गहरा असर छोड़ती हैं।

wislawa-szymborska-1

संभावनाएं

(अनुवाद:  राजेश कुमार झा)

मुझे पसंद हैं फिल्में, थोड़ी ज्यादा

और बिल्लियां भी।

वार्ता नदी के किनारे बलूत के पेड़,

मुझे थोड़े अधिक पसंद हैं।

दोस्तोवस्की से ज्यादा,

डिकेंस पसंद हैं मुझे।

मानवता को पसंद करने की बजाय,

लोगों को पसंद करना अच्छा लगता है मुझे थोड़ा ज्यादा।

सूई धागे को पास रखना पसंद करती हूँ मैं थोड़ा ज्यादा,

पता नहीं कब आन पड़े जरूरत!

वैसे हरा रंग है पसंद मुझे थोड़ा ज्यादा।

पसंद नहीं मुझे यह कहना कि,

है तर्क वितर्क ही सभी मुश्किलों की जड़।

मुझे अपवाद पसंद हैं ज्यादा,

और जल्दी बाहर निकल आना भी।

मुझे पसंद है डॉक्टरों से इधर उधर की बातें करना,

बारीक लकीरों से बनी पुरानी तस्वीरें भी।

कविताएं लिखने का बेतुकापन भी पसंद है मुझे,

नहीं लिखने के बेतुकेपन से कुछ ज्यादा।

प्यार के मामले में मना लेना वर्षगांठ यूं ही,

कभी भी, किसी भी दिन- ज्यादा पसंद है मुझे।

नैतिकतावादी जो करते नहीं मुझसे कोई वादे,

पसंद हैं मुझे कुछ ज्यादा।

धूर्तता में सनी करुणा पसंद है मुझे,

जरूरत से अधिक भरोसेमंदी से कहीं ज्यादा।

सादे वेश में धरती पसंद है मुझे।

जीते गए मुल्क पसंद है मुझे, जीतने वालों से कहीं ज्यादा।

थोड़े शको-सुबहे रखना पसंद है मुझे।

बेतरतीबी की नर्क पसंद है,

सलीके वाले जहन्नुम से कुछ ज्यादा।

परियों की कहानियां पसंद हैं मुझे,

अखबारों की सुर्खियों से कुछ ज्यादा।

फूलों के बगैर पत्तियां पसंद हैं मुझे,

पत्तियों के बगैर फूलों से कुछ ज्यादा।

बिना पूँछ कटे कुत्ते पसंद हैं मुझे थोड़ा ज्यादा।

आँखों का हल्का रंग पसंद है मुझे,

क्योंकि मेरी आँखों का रंग है गहरा, कुछ ज्यादा।

मुझे पसंद हैं मेजों में दराज,

और भी बहुत कुछ पसंद है मुझे,

जिसके बारे में लिखा नहीं,

रह गईं जो अनकही, उनसे थोड़ा ज्यादा।

आजाद सिफर पसंद हैं मुझे,

सिफर के पीछे लगे सिफरों से थोड़ा ज्यादा।

कीट-पतंगों का वक्त पसंद है मुझे,

सितारों के समय से थोड़ा ज्यादा।

पसंद है मुझे दरख्तों पर दस्तक,

कितनी देर तक और कब तक पूछने से कुछ ज्यादा।

याद रखना यह संभावना,

कि अस्तित्व के अंदर ही है इसके होने का मतलब,

पसंद है मुझे कुछ ज्यादा।

Possibilities- Wisława Szymborska- English Poem used for Translation

 

अंत और शुरुआत

(अनुवाद:  राजेश कुमार झा)

हर जंग के बाद,

किसी न किसी को करनी होती है सफाई,

आखिर चीजें-

अपने आप तो ठीक नहीं होतीं।

किसी न किसी को हटाना होता है कचड़ा,

रखना होता है सड़क के किनारे,

ताकि लाशों से भरी गाड़ियां,

निकल सकें आसानी से, बेरोकटोक।

 

किसी न किसी को मैले करने होते हैं अपने हाथ,

हटानी पड़ती है राख और मवाद,

सोफे का टूटा-बिखरा स्प्रिंग,

कांच के टुकड़े,

और खून से सने फटे चिटे कपड़े।

 

किसी न किसी को तो ढोकर लाना होता है लोहे का खंभा,

ताकि खड़ी की जा सके दीवार,

चमकानी होती है खिड़कियों के शीशे,

ठोंकना होता है फिर से एक दरवाजा।

 

इन सबकी तस्वीरें नहीं होती खूबसूरत,

लग जाता है बरसों का वक्त,

जा चुके होते हैं कैमरे तबतक,

किसी दूसरी जंग में।

 

हमें चाहिए होते हैं वापस अपने पुल,

और नए रेलवे स्टेशन,

फट जाती हैं हमारी कमीज की आस्तीनें,

ये सब करते, उठाते गिराते बांहें बार बार।

 

हाथों में लिए झाड़ू याद करता है कोई,

कैसा था यह सब कुछ पहले,

सामने कोई दूसरा सुन रहा है,

क्योंकि उसका सर अब भी धड़ से लगा है।

लेकिन आसपास कुछ लोग हैं और भी,

लगा है छोटा सा मजमा,

उब रहे हैं वे यह सब सुनकर।

 

कभी कभार झाड़ियों में मिल जाते हैं अब भी,

जंग खाए कुछ तर्क,

ढोकर ले जाते हैं उन्हें,

डाल देते हैं कूड़े के ढेर में।

 

जिन्हें पता था,

कि क्या हो रहा था यहाँ,

छोड़ दें रास्ता उनके लिए

जो जानते हैं कम, बहुत ही कम,

इतना कम जो है शायद नहीं के बराबर।

 

ये वजह थी या वो,

वो वजह थी या ये..

इन बहसों से भी पुरानी घास हो चुकी है बड़ी,

लेटा है कोई इनके बीच होँठों में दबाए तिनका,

तक रही हैं उसकी आँखें, बादलों के पार-लगातार।

 

The End and the Beginning-Wislawa Szymborska-(English Text)

 

आंकड़ों की बात (विस्लावा सिंबोर्सका)

सौ में से बावन
जानते हैं मुझसे बेहतर।
बाकी तकरीबन सभी,
ढुलमुल और अनजान-पता नहीं करना क्या है आगे।

उनचास,
ज्यादा वक्त न लगे तो मदद को तैयार।
हमेशा अच्छे, क्योंकि हो नहीं सकते वे और कुछ भी-
चार या शायद पांच।
तारीफ कर सकें, बिना जले भुने,
अठारह।

जवानी में कर जाते हैं गलती,
साठ, थोड़ें कम या ज्यादा।
पंगा नहीं ले सकते जिनसे,
चार या चालीस।
डर डर के बिताते हैं ज़िंदगी,
किसी इंसान या किसी चीज से,
सतहत्तर।

खुश रह सकते हैं,
बीस से ज्यादा नहीं।

हालातों की वजह से क्रूर, निर्दयी,
अच्छा है हमें नहीं मालूम,
अंदाजा लगाना भी ठीक नहीं।
घटनाओं के बाद बुद्धिमान,
उतने ही जितने होते हैं पहले से ही होशियार।
ज़िंदगी में चाहिए जिन्हें सिर्फ सामान,
तीस।
(वैसे मैं चाहती हुं कि गलत हो यह आंकड़ा)

दर्द में हो रहे हैं दुहरे,
और अंधेरे में नजर नहीं आता कोई चिराग़-
होंगे तिरासी, आज नहीं तो कल।
इंसाफ पसंद-
बहुत सारे, पैंतीस
हां अगर समझने में लगे मिहनत
तीन।

हमदर्दी के लायक,
निन्यानबे।
मरेंगे आज न कल,
सौ फी सदी,
बदला नहीं ये आंकड़ा कभी।

A Word on Statistics- Wislawa Symborska- English Text

6 thoughts on “विस्लावा सिंबोर्सका की कविताएं

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  1. बहुत बेहतरीन अनुवाद, झरने की रवानी का संगीत जैसे जस का तस रख दिया गया हो ऐसे कि लगने लगे वो कहीं ज़्यादा संगीतमय, जैसा कि झरने गाते हैं खुद! वाह!!

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  2. Is uttam kriti ko Hindi men anuvad kar logon tak pahuchane ke liye kotishah sadhuvad. Marmasparsi vednaon ko sangitmai swaroop ke saath sarvagrahya banane ke liye dhanyavad. Bahut sundar.

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  3. सर, हिंदी में उपलब्ध कराने हेतु आपको कोटि-कोटि धन्यवाद !
    आप के प्रयासो से हम तक इतनी अच्छी कृति पहुँच पाई ! 🙂

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