लैंग्सटन ह्यूजेज (1902-1967)- प्रसिद्ध अश्वेत कवि, नाटककार तथा उपन्यासकार। बीसवीं सदी के आरंभ में अमेरिका में शुरु हुए हारलेम प्रतिरोध के पुरोधा कवि। अश्वेत रचनाधर्मिता को नया रंग देने तथा साहित्य के एक नए सौंदर्यबोध का सृजन करने वाले कवि के रूप में विख्यात।
खूबसूरत ज़िंदगी
(अनुवाद– राजेश कुमार झा)
नदी के किनारे पहुँच
बैठ गया मैं
कोशिश की सोचने की मगर नाकामयाब।
छलांग लगा दी और डूब गया मैं।
एक बार ऊपर आया- चीखा,चिल्लाया
फिर ऊपर आया-
रोया धोया।
मर गया होता डूब कर मैं,
पानी न होता अगर इतना बर्फीला।
पानी बहुत बर्फीला था- सचमुच, ठंडा।
बढ़ा गगनचुंबी इमारत की ओर,
धरती से सोलह मंज़िल ऊपर,
सोचा-
कूद जाऊँ नीचे
याद आयी मुझे मेरी प्यारी बच्ची।
खड़ा रहा वहीं-
चीखता चिल्लाता,
रोया धोया वहीं खड़े रहकर।
गगनचुंबी नहीं होती अगर वो इमारत,
समा जाता मैं-
मौत के आगोश में।
मगर इमारत बहुत ऊँची थी, सचमुच बहुत ऊँची।
ज़िंदा हूँ अगर आज मैं इस जगह
उम्मीद है ज़िंदगी रहेगी कायम।
प्यार की ख़ातिर मर गया होता शायद
लेकिन पैदा हुआ हूँ जीने के लिए।
देख सकती हो चीखते चिल्लाते मुझे,
मेरी प्यारी बच्ची-
और शायद रोते धोते भी।
मेरी मृत्यु देखनी पड़े तुम्हें कदाचित
कर्त्तव्यच्युत होउंगा, ग़ैर ज़िम्मेदार भी।
खूबसूरती है ज़िंदगी।
मधुशाला की तरह।
ख़ूबसूरत है ज़िदगी।
See: Life is Fine- Langston Hughes (English)
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जाना है नदियों को मैंने
नदियाँ-
पुरातन इस दुनियाँ की तरह,
इंसान की नसों में बहते लहू से भी पुरानी।
मेरी आत्मा हो चुकी है गहरी-
नदियों की तरह।
मैंने डुबकियाँ लगायी थीं फरात में-
सुबह पैदा हुई थी बस तभी।
कांगों के किनारे मैंने बनायी झोंपड़ी अपनी,
सुलाया था इसने मुझे लोरियां सुनाकर।
विहंगम दृष्टि डाली मैंने नील पर
और खड़ी कर दी पिरामिडें इसके ऊपर।
मिसिसिपी के संगीत का स्पंदन सुना था मैंने
जब लिंकन ने प्रयाण किया था न्यू ऑर्लियंस को
और देखा था इसके गंदले तलछट को,
डूबते सूरज की किरणों में सुनहला होता।
जाना है नदियों को मैंने।
प्राचीन, धूमिल नदियाँ।
मेरी आत्मा हो चुकी हैं गहरी- नदियों की तरह।
See: The Negro Speaks of Rivers- Langston Hughes (English)
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