माया एंजेलॉ की कविताएं

माया एंजेलॉ (1928-2014) प्रख्यात अमेरिकी अश्वेत कवयित्री। कविता के अलावा लेखन, नृत्य, अभिनय तथा गायन के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान। सात खंडों में प्रकाशित आत्मकथा ने इन्हें दुनिया भर में विशेष ख्याति दिलवाई। एंजेलॉ की रचनाएं अमरीका के अश्वेत लोगों की समस्याओं और अश्वेत संस्कृति के विभिन्न आयामों की एक सशक्त अभिव्यक्ति मानी जाती है। यहाँ उनकी दो कविताओं ‘स्टिल आइ राइज’तथा ‘व्हाई दि केज्ड बर्ड सिंग्स’, का अनुवाद प्रस्तुत किया जा रहा है। ये कविताएं उनकी आत्मकथा के दो खंडों के नाम भी हैं।

(अनुवाद- राजेश कुमार झा)

हाँ, उठूँगी मैं

अपने गलीज, धोखेबाज लफ्जों से,

भले ही कर दो मुझे बदनाम इतिहास के पन्नों में,

मिला दो मिट्टी में

मगर फिर भी गुबार की तरह उठूँगी मैं।

क्या मेरी मस्ती और बेबाकी करती है परेशान तुम्हें?

डूबे हो क्यों गम में इस कदर?

शायद मेरी मदमस्त चाल से,

लगता है तुम्हें कि हैं तेल के कुंएं मेरे घर के अंदर।

जैसे जरूर उगते हैं सूरज और चाँद,

और समंदर में उठता है ज्वार,

जैसे जगती हैं उम्मीदें, ऊँची और भी ऊँची,

उठूँगी, हाँ उठूँगी मैं।

शायद मुझे टूटा देखना चाहते थे तुम-

गरदन झुकी, नीची आँखें

दिल से निकली मेरी चीखों से कमजोर हो चुके-

आँसुओं की तरह भरभराकर ढहते मेरे कंधे।

क्या मेरी ढिठाई करती है तुम्हें परेशान?

ठहाकर हँसती हूँ मैं तो शायद लगता है तुम्हें

कि मेरे घर के पिछवाड़े  है कोई सोने की खान।

ओह, कितने परेशान हो जाते हो तुम!

अपने शब्दों से कर सकते हो छलनी मुझे,

अपनी आँखों के नश्तर से चीर सकते हो मुझे,

अपनी नफरत से मार सकते हो मुझे, मगर…

उठूँगी, हाँ उठूँगी मैं।

क्या मेरी देह तुम्हें कर देती है परेशान?

कहीं मुझे नृत्य करता देख

तुम्हें अचरज तो नहीं होता?

ऐसा तो नहीं लगता कि छिपा है कोई हीरा,

मेरी जांघों के संधिस्थल में?

शर्मनाक इतिहास की झुग्गियों से,

उठूँगी मैं।

दर्द में बीते कल से,

उठूँगी मैं।

मैं हूँ काली, हहराती, फैली,

कभी उठती, कभी गिरती,

समंदर की लहर।

छोड़कर पीछे खौफजदा, सहमी सहमी रातें

उठूँगी मैं।

फैला होगा सुबह का खूबसूरत उजियारा,

उठूँगी मैं।

लाई हूँ पुरखों की थाती,

गुलामों का सपना, उनकी उम्मीद हूँ मैं।

उठूँगी मैं।

उठूँगी मैं।

उठूँगी मैं।

See: Still I Arise- Maya Angelou (English)

***

पिंजड़े की चिड़िया गाती है      

                     

मैं जानती हूँ,

हवाओं की पीठ पर सवार

खुले आसमान में फुदकती है चिड़िया।

तैरती निकल जाती है दूर, लहरों के किनारे,

सूरज की नारंगी रोशनी में डुबोकर अपने पंख

थाम लेती है नीली छतरी को अपने दुस्साहस की चोंच में।

मगर अपने छोटे से पिंजड़े में बंद चिड़िया

सिमटी, घुटती रहती- बस दो कदम उधर, एक इधर,

घूरती, बेचैन नजरों से अपनी सलाखों को

कटे हैं उसके पंख, पैरों में पड़ी हैं बेड़ियां-

इसीलिए खोलती है वह अपना कंठ, फूट पड़ता है संगीत।

पिंजड़े की चिड़ियां गाती है,

कंपकंपाते शरीर, थरथराते कंठ

छेड़ देते हैं संगीत, थिरक उठते हैं शब्द,

किसी अजनबी दुनिया के लिए।

सुनाई देती है  उसकी आवाज, दूर कहीं दूर

पर्वतों के पार।

क्योंकि वह गाती है गीत आजादी के।

मैं जानती हूँ,

आजाद चिड़िया के ख्वाबों  की हवाएं होती हैं अलग

वे बहती हैं, हौले हौले, सहलाती पेड़ों को।

किसी फुलबाड़ी में, सुबह की गुनगुनी धूप में पसरे

मांसल कीड़ों का ख्याल नाचता है उनकी आँखों में,

दूर तक फैला आसमान, लगता है उन्हें अपना।

मगर पिंजड़े की चिड़िया बैठी होती है सपनों की कब्र पर,

चीखती है उसकी परछांई, किसी दु-स्वप्न की याद में,

कटे हैं उसके पंख, पैरों में पड़ी है बेड़ियां

इसीलिए वह खोलती है अपना कंठ, फूट पड़ता है संगीत।

***

See: I Know why the Caged Bird Sings- Maya Angelou (English)

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