महमूद दरविश (1942 – 2008)
महान फिलिस्तीनी कवि तथा लेखक। अपनी रचनाओं के लिए उन्हें फिलिस्तीन का राष्ट्र-कवि माना जाता है। उनकी रचनाओं में फिलिस्तीनी जनता के अपनी जमीन से उखड़ने और उनके संघर्षों की त्रासदी दिखाई देती है। उन्होंने लंबे समय तक पेरिस तथा बेरुत में निर्वासित जीवन व्यतीत किया। साहित्यिक जगत के अनेक सम्मान प्राप्त कर चुके दरविश को अपनी कविताओं के पाठ के लिए जेल की सज़ा भी झेलनी पड़ी। दरविश को अपने ही देश में विस्थापित जनता की आवाज माना जाता है।
पहचान-पत्र
(अनुवादः राजेश कुमार झा)
दर्ज़ करो!
कि मैं एक अरब हूं
और मेरी पहचान-पत्र संख्या है पचास हज़ार
आठ बच्चे हैं मेरे
और नवां आ रहा है – गरमियों के बाद।
नाराज़ हो तुम?
दर्ज़ करो!
कि मैं एक अरब हूं
काम करता हूं खदान में अपने साथी मज़दूरों के साथ
आठ बच्चे हैं मेरे
उनके लिए लाता हूं
रोटियां, कपड़े और किताब
चट्टानों से लड़ कर….
आता नहीं मैं तुम्हारे दर पर मांगने कुछ भी
नहीं करता शर्मिंदा खु़द को तुम्हारी चैkखट पर
नाराज़ हो तुम?
दर्ज़ करो!
कि मैं एक अरब हूं
नाम है मेरा…मगर कोई पदवी नहीं
धैर्य रखता हूं ऐसे मुल्क में
जहां लोग हैं बेचैन
मेरी जड़ें धंस चुकीं थीं ज़मीन में
जब वक्त था अजन्मा
बाकी था शुरू होना युगों का
चीड़ और जैतून भी नहीं उगे थे
न थी घास धरती पर।
मेरे पिता संभ्रांत नहीं
हलधर परिवार की संतति मैं
और दादाजी महज एक खेतिहर
न जन्म कुलीन न पालन पोषण।
सीखी मैंने सूरज की अकड़
ककहरे के पहले।
पहरेदार की झोंपड़ी है मेरा घर
घासफूस, टहनियों से बना।
मेरी हैसियत से संतुष्ट हैं आप?
नाम है मेरा मगर पदवी नहीं।
दर्ज़ करो!
कि मैं एक अरब हूं
चुराया है तूने मेरे पुरखों का बागीचा
और मेरी उपजाऊ ज़मीन
और मेरे बच्चे भी
छोड़ा नहीं कुछ भी हमारे लिए- बस ये चट्टान …
ले लेगी क्या इन्हें भी सरकार-
जैसा सुना है मैंने।
इसलिए पहले सफे के कपाल पर लिख दो-
नफरत नहीं करता मैं लोगों से
न ही ज़ोर-ज़बर्दस्ती
लेकिन अगर भूख सताएगी मुझे-
खा जाऊंगा मांस
मुझे महरूम करने वाले का
सावधान….
सावधान….
मेरी भूख से
मेरी लाल लाल आंखों से।
See: Identity Card- Mehmoud Darwish (English)
पिस रही है धरती
धरती पिस रही है हमें,
फंसा रही है हमें आखिरी पगडंडियों में,
सिकोड़ कर अपना बदन,
हम कर रहे है कोशिश निकल पाने की।
धरती पिस रही है हमें,
काश अगर होते हम इसके गेहूं,
मरकर भी ज़िंदा रह पाते,
अगर होती ये हमारी माँ शायद करती रहम हम पर,
काश हम होते पत्थरों की तस्वीर,
सपने में जो दिखती है आइने की तरह,
चेहरे जो हैं अपनी रूह की आखिरी लड़ाई में मशरूफ,
हममें से जो बचेंगे जिंदा उनका कर देंगे कत्ल,
उनके बच्चों की दावत का हम मनाते हैं मातम,
हमने देखे हैं उनके चेहरे जो फेक देते हैं हमारे बच्चे खिड़कियों से बाहर।
एक सितारा चमकाएगा हमारा आइना,
आखिरी सरहद के आगे कहां जाएंगे हम ,
कहां उड़ेगी चिड़िया आखिरी आसमान के पार,
सोएंगे कहां पौधे हवा की आखिरी सांस के बाद?
सुर्ख धुंध से लिखते हैं हम अपना नाम,
अपने गोश्त से करते हैं आखिरी इबादत,
हम यहीं मरेंगे, इन्हीं आखिरी पगडंडियों पर,
यहां या वहां, हमारा लहू उगाएगा जैतून का पेड़।
Earth Presses Against Us- Mehmoud Darwish- English Text
घर की ओर
हम जाते हैं घर की ओर जो बना नहीं हमारी मांस-पेशियों से,
इसके शहतूत नहीं बने हमारी हड्डियों से,
चट्टान इसके नहीं मंत्रों की पहाड़ी बकरियों जैसे,
आंख वाले पत्थर नहीं हैं नरगिस के फूल।
हम जाते हैं घर की ओर,
जो बनाती नहीं सूरज से हमारे सरों के गिर्द रोशनी का घेरा,
कल्पना लोक की औरतें करती हैं हर्षध्वनि से स्वागत,
एक समुद्र हमारे लिए, एक हमारे खिलाफ,
जब पास न हों गेहूं और न पानी,
खाओ हमारा प्यार, पियो हमारे आंसू,
कवियों के लिए हाजिर है मातम का साफा,
संगमरमर के बुतों का काफिला,ऊंची करेगा हमारी आवाज,
वक्त की धूल को रखने आत्मा से मौजूद है अस्थि कलश,
हमारे लिए गुलाब, हमारे खिलाफ गुलाब।
आपकी महिमा आपकी, मेरा गौरव मेरा,
अपने घरों का अनदेखा ही देखते हैं हम,
यही है हमारी पहेली, महिमा है हमारी
इन्हीं रास्तों से लहूलुहान नंगे पांव ढोकर लाए हम सिंहासन,
जो जाती है हर कहीं सिवा हमारे घरों के।
आत्मा को पहचानना होगा, अपनी ही आत्मा के भीतर,
या फिर आए मौत यहीं।
We Journey Towards a Home-Mehmoud Darwish- English Text
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